Book Title: Mahabal Malayasundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 321
________________ (३१७) अनुक्रमजी, ऊपजशे शुनगय॥ गुण ॥१५॥ बोधिनाव लहेशे तिहांजी, सुगुरु संयोग लहेवि ।। शुद्ध चारित्र तिहां पमिवजीजी, लेहेशे मुगति सुखहे वि॥॥१६॥ ढाल कही अमत्रीशमीजी, चोथा खंमनी एह ॥ कांति कहे मलया श्हांजी, पामी नवतणो बेह ॥गुण॥१७॥ ॥दोहा॥ ॥ एक श्लोक चिंतनथकी, पामी मलया पार ॥ ते माटे संसारमां, ज्ञान सकल शिरदार ॥ १ ॥ सुप रीक्षक सुविवेकीयें, करवो ज्ञानान्यास ॥हिलम सं कट उझरे, ज्ञान निधान प्रकाश ॥२॥संकटमांपण पालीयुं, जिम मलयायें शिल ॥ तिम वली बीजो पाल शे, ते लेदेशे शिवलील ॥३॥ महाबलें जिम सांसह्यो, माहा विषम उपसर्ग ॥ तिम वली जे सहेशे खरो, ले हेशे ते अपवर्ग॥४॥ जिम प्रथम व्रत आदस्यां, दंप तीये दृढ चित्त॥श्रादरवां तिम नावथी, बीजे पण सुप वित्त ॥५॥कीधी मुनि आशातना, दंपतीये धुर जेम॥ पुरक हेतु जाणी तिसी, करशो मां कोई तेम ॥६॥ ॥ ढाल योगणचालीशमी ॥ दीगे दीगो रे वामाजीको नंदन दीगे॥ए देशी॥ ॥ जावे जावे रे नविकरजो शान अन्यास॥झाने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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