Book Title: Mahabal Malayasundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 323
________________ ( ३२० ) जाव बनाया रे ॥ ज० ॥ ए ॥ संवत सर मुनि मुनि वि धु ( १७१५) वर्षे, रही पाटण चोमास ॥ श्री विजयक्ष मा सूरीश्वर राज्यें, गाई मलया उल्लास रे ॥ ज० ॥ १० ॥ खात्री तो शुभ दिवसें, रास हुई सुप्रमाण || बालककी मानी परें माही, हांसी न करशो सुजाण ॥ ज० ॥ ११ ॥ श्रीजय तिलक वचनथी जे में, न्यूना धिक कांई जांख्युं ॥ संघ सकलनी साखें तेहनुं, मि छाम दाख्युं रे ॥ ज० ॥ १२ ॥ उत्तमना गुरु परिचय करतां, होय सम कितनो शोध ॥ उत्तर लाज अधिक वली पामे, श्रोता जे प्रतिबोध रे ॥ ज० ॥ १३ ॥ पाटण नगरनो संघ विवेकी, तस आग्रहथी सीधी ॥ चिहुं खंमें थई सर्व संख्यायें, ढाल एकाएं कीधी रे ॥ ज० ॥ १४ ॥ जे जवि जावें जशे गुणशे, लेदेशे ते जयमाल || जंगुणचाली शमी कही कांतें, चोथा खंग नी ढाल रे || ज० ॥ १५ ॥ सर्व श्लोक संख्या ॥ ३४८८ ॥ 古孟孟建建 ॥ इति श्री ज्ञानरत्नोपाख्यानापरनाम्नि श्रीमलयसुं दरीचरित्रेपं मितकां ति विजयग णि विरचितेप्राकृतप्रबंधे शीलावदातपूर्वजववर्णनोनामाचतुर्थखंमः परिसमाप्तः॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 321 322 323 324