Book Title: Mahabal Malayasundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 315
________________ ( ३१२ ) जोर, पाऊंती मुख सोर, आज हो पूढे रे कहे शुं बे कारण वैरनुंजी ॥ ६ ॥ इणि तें महाभाग, मुनिवरनें ईणे जाग, आज हो लाखें रे तुज पाखें न करे को इ स्युंजी ॥ ७ ॥ इणी घणी जूपाल, सींची तरुनी माल, श्राज हो जांखे रे सवि दाखे करणी आपण जी ॥ ८ ॥ रूठो नूप तिवार, नानाविध देई मार, व्याज हो मारी रे तेह नारी सारी पातकेंजी ॥ ए॥ आप चरितने यो ग, पामी फलनो जोग, व्याज हो बडी रे दुःख पूर्वी न रकें ऊपनीजी ॥ १० ॥ नरक तथा संताप, सदेशे अ ति दुःख थाप, आज हो वक्रें रे जवचकें जमशे बापमी जी ॥ ११ ॥ चोथे खंमें रसाल, बत्री शमी एह ढाल ॥ आज हो कांतें रे जलि जांतें जांखी शास्त्रधीजी ॥ १२ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ भूमिपाल निज तातनो, शोक अतीव करंत ॥ समजाव्यो सचिवा दिकें, पण क्षण नवि बांगंत ॥ १ ॥ जाणी तेवुं तातंनुं, दुस्सह मरण विराम ॥ पनियो शोकसमुद्रमां, नूप सहसबल ताम ॥ २ ॥ शतबल दशशतबल बिन्हें, जनक शोक चित्त धारि ॥ लखमण राम तणी परें, तपे अर तिनें जार ॥ ३ ॥ कृष्णदेव बलिनें, द्वारावतीनें दाह ॥ शोक हु पितृनो जि For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324