Book Title: Mahabal Malayasundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 307
________________ ( ३०४ ) हरे रे, पावन ए पुर लोक रे वारू ॥ दीधो रे जे पु ये जनकें त्र्याइने दी दारु ॥ १३ ॥ एम कही पद पा डुका रे, मूकीनें नरनाथ रे वंदे ॥ त्यांहि रे यति जक्तें रातो पापनें निकंदे ॥ १४ ॥ तात चरण युग नेटिनो रे, लोजी ते निशि दुःखथी रे काढें || प्रगको रे हवे प्रगट्यो दियर दी पियो प्रगाढें || १५ || ढाल हुई वत्रीशमी रे, चोथे खंदें एढ रे चोखी ॥ कांतें रे शुभ शांतें जांखी रंगमां रस पोखी ॥ १६ ॥ ॥ दोहा ॥ " ॥ कनकबती हवे ते समे, जनपद पुर जटकंत॥ दैवयोगथी डुरकणी, तिए पुर यावी रहंत ॥ १ ॥ तेहि दिन संध्या सभे, काननमां गई काम ॥ दृष्टि पड्यो महबल मुनि रह्यो काउस्सग्ग ताम ॥ २ ॥ नि रखी रूमें उलखी, हुई महा जय जीती ॥ तेहिज ए सुत शूरनो, महबल मुनि अवनीत ॥ ३ ॥ मूलथ की ए माहरां, जाणे सकल चरित ॥ करशे प्रगट इहां कदे, तो माहारे कुण मित्त ॥ ४ ॥ तेह जण विरचुं हां, तेहवो कोई उपाय || जेहथी को जाणे नहिं, मुज कुचरित पलाय ॥ ५ ॥ करुं उपेक्षा किम हवे, अ नरथ चांपुं पाय || नहिं मुज जीवत अन्यथा, वली For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324