Book Title: Lo Isko Bbhi Padh Lo
Author(s): Rishabhdas Mahatma
Publisher: Rishabhdas Mahatma

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Page 2
________________ निवेदन मैं जैसा ओसवाल जाति का शुभचिन्तक हूँ वैसा ही सेवग जाति का भी हितेच्छुक हूँ। मैंने यह लेख न तो सेवगों को हानी पहुँचाने या हलके दिखाने की नीयत से लिखा है और न सेवगों के साथ मेरा जरा भी द्वेष है इस लेख की ५००० प्रतिएँ वित्तीर्ण करने से जितना फायदा ओसवालों को हुआ उतना ही लाभ सेवगों को भी हुआ है मेरा लेख पहिला तो सेवगों को कुछ कटु सा लगा ही होगा कारण कटु दवाई का स्वभाव है कि लेते समय दिल को दुख देती है पर परिणाम उसका अच्छा हो आता है इस भाँति मेरे लेख को पढ़ कर बहुत सेवर्गों ने स्वयं ओसवालों से मांगना त्याग दिया है और वे नौकरी व्यापार हुन्नरादि में लगकर पराधीनता की जंजीरों को तोड़ दो है और बहुतसे सेवग इसका अनुकरण करने को तैयार भी होगये हैं आशा है कि थोड़े ही अर्से में सेवग जाति स्वतंत्र बन सुख का अनुभव करने लग जायगी । जिन महानुभाव ओसवालों ने मेरा लेख पढ़ा है। वे जैन मंदिरों सेवगों को हटा दिया और उनको त्याग सीख बिदा देना भी बंद कर दि वे लोग न तो सेवगों से राखी बंधाते हैं न तिलक करवाते हैं और न पगलागना भी करते हैं । किन्तु अभी ऐसे ओसवालों की भी कमी नहीं है। कि मेरा लेख पूर्ण पढ़ा भी न होगा इतने में ही इस लेख की सब नकलें खतम होगई उन महानुभावों के लिये मुझे दूसरी आवृति छपवानी पढ़ी है । मैंने मेरे लेख में सेवर्गों को भाट बतलाया है और सेवग कहते हैं कि हम शाकद्वीपीय मग हैं यदि वे प्रमाणिक प्रमाणों द्वारा बतला दें तो मुझे मानने में एतराज भी नहीं हैं क्योंकि मुझे इनके साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध तो करना ही नहीं है इस हालत में चाहे वे भाट हों चाहे मग हो ? महात्मा रिषभदास

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