Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi Part 01 Author(s): Vishvanath Shastri, Nigamanand Shastri, Lakshminarayan Shastri Publisher: Motilal Banrassidas Pvt Ltd View full book textPage 5
________________ 1 ( २ ) पाणिनीय व्याकरण किसी भी भाषा की सुरक्षा एवं उसके मौलिक ज्ञान के लिए-व्याकरण की परम श्रवश्यकता होती है। बिना व्याकरण के भाषा प्रायः विशृङ्खल और अपूर्ण रहती है। सर्वप्रथम इस चीज को देवों ने अनुभव किया और अपनी भाषा को व्याकृत करने के लिए देवराज इन्द्र से प्रार्थना की, तब इन्द्र ने वाणी को ब्याकृत किया जैसा कि तैत्तिरीय-संहिता में लिखा है "वाग वै पराच्यव्याकृताऽवदत्, ते देवा इन्द्रमब्रुवन् – इमां, नो वाचं व्याकुर्विति । - - तामिन्द्रो मध्यतोऽवक्रम्य व्याकरोत्” (तै. सं. ६ । ४ । ७) बस, यहीं से व्याकरण की परम्परा का आरम्भ होता है, तात्पर्यतः संस्कृतभाषा के व्याकरण का निर्माण बहुत प्राचीन काल में आरम्भ हो गया था, अनेक श्राचार्यों ने व्याकरण की रचना की, ( महर्षि पाणिनि ने अपनी अष्टाध्यायी में पिशलि, काश्यप, गार्ग्य, गालव, चाक्रवर्मण, भारद्वाज, शाकटायन, शाकल्य, सेनक और स्फोटायन नाम के दस व्याकरण - प्रवक्ता पूर्वाचार्यों का उल्लेख किया है ) किन्तु अन्त में यह संस्कृतव्याकरण परिवर्धित परिमार्जित होता हुआ पाणिनीय - शब्दानुशासन के रूप में प्रकट हुआ । पाणिनीय व्याकरण विश्व के समस्त व्याकरणों में श्रेष्ठ, सर्वाङ्गपूर्ण एवं वैज्ञानिक शैली से लिखा गया माना जाता है, इसे देखकर पाश्चात्य विद्वानों के श्राश्चर्य चकित हृदय से निकले उद्गारों को पढ़कर इसकी महत्ता और गौरव विशेष रूप से समझ में आता है N ( १ ) " पाणिनीय व्याकरण मानवीय मस्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है" ( लेनिन ग्राड के प्रोफेसर टी० शेरवाल्सकी । ( २ ) " पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं" ( कोल ब्रुक ) ( ३ ) " संसार के व्याकरण में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है यह मानवीय मस्तिष्क का अत्यन्त महत्वपूर्ण श्राविष्कार है" ( सर W. W. हण्टर ) ( ४ ) " पाणिनीय व्याकरण उम्र मानव मस्तिष्क की प्रतिभा का श्राश्वर्यंतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आजतक सामने नहीं रखा" ( प्रो० मोनियर विलियम्स ) पाणिनीय व्याकरण की मूलभूत पुस्तक है 'अष्टाध्यायी' । इसमें ग्राठ अध्याय हैं, प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं, प्रत्येक पाद में ३८ से २०० तक सूत्र हैं। इस प्रकार अध्याय में आठ अध्याय बत्तीस पाद और सब मिलाकर लगभग ३६५५ सूत्र .....Page Navigation
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