Book Title: Laghu Kshetra Samas Prakaranam
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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(२) पढमे लवणो बीए, कालोअहि सेसएसु सव्वेसु । दीवसमनामया जा, सयंभुरमणोदही चरमो ॥ १० ॥ बीओ तइओ चरमो, उदगरसा पढमचउत्थपंचमगा। छट्ठोऽवि सनामरसा, इक्खुरसा सेसजलनिहिणो॥११॥ जंबुद्दीव पमाणं-गुलिजोअणलक्खवट्टविक्खभो । लवणाईआ सेसा, वलयामा दुगुणदुगुणा य ॥ १२॥ वयरामईहिं णिअणिअ-दीवोदहिमज्झगणिअमूलाहिं । अदुचाहिं बारस-चउमूलेउवरिरंदाहिं ॥१३॥ वित्थारदुगविसेसो, उस्सेहविभत्तखओ चओ होइ । इअ चूलागिरिकूडा-तुल्लविक्खंभकरणाहिं ॥ १४ ॥ गाउदुगुच्चाइ तय-हभागरुंदाइ पउमवेईए । देसूणदुजोअणवर-वणाई परिमंडिअसिराहिं ॥१५॥ वेईसमेण महया, गवक्खकडएण संपरित्ताहिं । अट्ठारसूणचउभत्त-परहिदारंतराहिं च ॥ १६ ॥ अटुच्चचउसुवित्थर-दुपाससकोसकुड्डदाराहिं । पुव्वाइमहड्डिअ-देवदारविजयाइनामाहिं ॥१७॥ णाणामणिमयदेहलि-कवाडपरिघाइदारसोहाहिं । जगईहिं ते सव्वे, दीवोदहिणो परिरिकत्ता ॥१८॥ वरतिणतोरणज्झयछ-त्तवाविपासायसेलसिलवट्टे । वेइवणे वरमंडव-गिहासणेसुं रमंति सुरा ॥ १९ ॥ इह अहिगारो जेसिं, सुराण देवीण ताणमुप्पत्ती। णिअदीवोदहिणामे, असंखइमे सणयरीसु ॥ २० ॥ जंबूदीवो छहिँ कुल-गिरिहिं सत्तहिँ तहेव वासेहिं । पुवावरदीहेहिं, परिछिन्नो ते इमे कमसो ॥२१॥

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