Book Title: Laghu Kshetra Samas Prakaranam
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 188
________________ (११) सिलमाणट्ठसहस्सं-समाणसीहासणेहिं दोहिं जुआ। सिँल पंडुकंबला र-तकंबला पुर्वपच्छिमओ ॥११८ ॥ जामुत्तराउ ताओ, इंगेगसीहासणाउ अइपुव्वा । चैउसु वि तासु नियासण-दिसि भवजिणमजणं होई ॥११९॥ सिहरा छत्तीसेहिं, सहसेहिं मेहलाई पंचे सए । पिंहुलं सोमणसवणं, सिलविणु पंडगवणसरिच्छं ॥ १२० ॥ तब्बाहिरि विक्खंभो, बायालसयाइं दुसयरि जुआई। अट्ठेगारसभागा, मज्झे तं चेव सहसूणं ॥१२१ ॥ तत्तो सड़दुसट्ठी-सहसेहिं गंदणं पि तह चेव । णवरि भवणपासायं-तरह दिसि कुमरिकूडा वि ॥ १२२॥ णवसहस णवसयाई, चउपण्णा छच्चिगारहाया य । णंदणबहिविक्खंभो, सहसूणो होई मज्झम्मि ॥१२३ ॥ तदहो पंचसएहिं, महिअलि तह चेव भ६सालवणं । णवरमिह दिग्गइ चिअ, कूडा वणवित्थरं तु इमं ॥ १२४ ॥ बांवीस सहस्साई, मेरुओ पुवओ अ पच्छिमओ। त चाडसीविहत्तं, वणमाणं दाहिणुत्तरओ ॥१२५ ॥ छव्वीस सहस चउ सय, पणहत्तरि गंतु कुरुणइपवाया। उँभओ विणिग्गया गर्य-दंता मेरुम्मुहा चउरो ॥ १२६ ॥ अग्गेआइसु पयाहि-णेण सिअरत्तपीअनीलाभा । सोमणसविज्जुप्पह-गंधमायणमालवंतक्खा ॥१२७ ॥ अहलोयवासिणीओ, दिसाकुमारीउ अट्ठ एएसिं। गयदंतगिरिवराणं, हिट्ठा चिट्ठति भवणेसु ॥ १२८ ॥ धुरि अंते चउपणसय, उच्चत्ति पहुत्ति पणसयाऽसिसमा । दीहत्ति ईमे छकला, दुसय णवुत्तर सहसतीस ॥ १२९ ॥

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