Book Title: Laghu Kshetra Samas Prakaranam
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
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(२०) अथ तृतीय धातकीखंडद्वीप अधिकार. जामुत्तरदीहेणं, दससयसमपिहुल पणसयुच्चेणं । उसुयारगिरिजुगेणं, धायइसंडो दुहविहत्तो ॥२२५ ॥ खंडढुंगे छ छ गिरिणो, सग सग वासा अरविवररूवा । धुरि अंति समा गिरिणो, वासा ऍण पिहुंलपिहुलयरा ॥ २२६ ॥ दहंकुंडंडुत्तममे-रुमुस्सयं वित्थरं विॲडाणं । वदृगिरीणं च सुमे--रुवजमिह जाण पुव्वसमं ॥ २२७ ॥ मेरुदंगं पि तह चिअ, णवरं सोमणसहिद्दवरिदेसे । सगअडसहसऊणु त्ति, सहसपणसीइ उच्चत्ते ॥ २२८ ॥ तह पणणवई चउणउअ, अद्धचउणउअ अकृतीसा य । दस सयाइ कमेणं, पणट्ठाण पिहुत्ति हिट्ठाओ ॥२२९ ॥ णइकुंडदीववणमुह-दहदीहरसेलकमलवित्थारं । णइउंडत्तं च तहा, दहदीहत्तं च इह दुगुणं ॥२३०॥ इगलक्खु सत्तसहसा, अड सय गुणसीइ भद्दसालवणं । पुव्वावरदीहंतं, जामुत्तर अट्ठसीभइअं
॥ २३१॥ बहि गयदंता दीहा, पणलक्खूणसयरिसहस दुगुणट्ठा । इअरे तिलक्खछप्पण्ण-सहस्स सय दुण्णि सगवीसा ॥ २३२ ॥ खित्ताणुमाणओ सेस-सेलणइविजयवणमुहायामो। चउलरकदीह वासा, वासविजयवित्थरो उ इमो ॥ २३३ ॥ खित्तंकगुणधुवंके, दो सय बारुत्तरेहिं पविभत्ते । सव्वत्थ वासवासो, हवेइ इह पुण इय धुवंका ॥२३४ ॥ धुरि चउद लक्ख दुसहस, दोसगणउआ धुवं तहा मज्झे । दुसय अडत्तर सतस-हिसहस छव्वीस लक्खा य ॥ २३५ ॥

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