Book Title: Laghu Kshetra Samas Prakaranam
Author(s): Ratnashekharsuri
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha
View full book text
________________
(१६) उदयत्थंतरि बाहिं, सहसा तेसहि छसय तेसट्ठा । तह इगससिपरिवारे, रिक्खडवीसाडसीइ गहा ॥ १७८ ॥ छासहि सहस णवसय, पणहत्तरि तारकोडिकोडीणं । सण्णंतरेण वुस्से-हंगुलमाणेण वा हुंति ॥१७९ ॥ गहरिक्खतारगाणं, संखं ससिसंखसंगुणं काउं। इच्छियदीबुदहिमि य, गहाइमाणं विआणेह ॥ १८० ॥ चउ चउ बारस बारस, लवणे तह धायइम्मि ससिसूरा । परओदहिदीवेसु अ, तिगुणा पुव्विल्लसंजुत्ता ॥१८१ ।। णरखित्तं जा समसे-णिचारिणो सिग्घसिग्यतरगइणो। दिट्ठिपहर्मिति खित्ता-णुमाणओ ते णराणेवं ॥१८२॥ पणसय सत्तत्तीसा, चउतीससहस्स लक्खइगवीसा। पुक्खरदीवडणरा, पुव्वेण अवरेण पिच्छंति ॥ १८३ ॥ णरखित्तबहिं ससिरवि-संखा करणंतरेहिं वा होइ । तह तत्थ य जोइसिया, अचलद्धपमाण सुविमाणा ।। १८४॥ इह परिहि तिलक्खा, सोलसहस्स सयदुण्णि पउणअडवीसा । धणुहडवीससयंगुल-तेरससडा समहिआ य ॥१८५ ॥ सगसय णऊआकोडी, लक्खा छप्पण्ण चउणवइसहस्सा । सडसयं पउणदुकोस, सड़बासढिकर गणिअं ॥ १८६ ।। वपरिहिं च गणिअं, अंतिमखंडाइ उसु जिअं च धणुं । बाहुं पयरं च घणं, गणेह एएहिं करणेहिं ॥१८७ ॥ विक्खंभवग्गदहगुण-मूलं वदृस्स परिरओ होइ । विक्खंभपायगुणिओ, परिरओ तस्स गणिअपयं ॥ १८८ ॥
ओगाहु उसू सुचिअ, गुणवीसगुणो कलाउसू होइ । विउसुपिहुत्ते चउगुण-उसुगुणिए मूलमिह जीवा ॥ १८९॥

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202