Book Title: Laghu Ane Bruhat Prakrit Vyakaran
Author(s): Dalichand Pitambardas
Publisher: Dalichand Pitambardas

View full book text
Previous | Next

Page 505
________________ (२७६) અપભ્રંશમાં કારાન્ત નપુંસકલિંગ નામથી પર હિ અને અમને ? मेको माहेश याय छे. भन्नु जु तुच्छउँ तहे धगहे ॥ भग्गउं देक्खिवि निभय बलु बलु पसरिअउं परस्सु । उम्मिल्लइ ससि-रेह जि करि करवालु पियस्मु ॥ ॥ ३५५ ॥ सर्वादेर्डसेही॥ अपभ्रंशे सर्वादेरकारान्तात्परस्य ङसेही इत्यादेशो भवाते ॥ અપભ્રંશમાં સકારાન્ત સવૌદિથી પર કસ પ્રત્યયને એ આदेश याय ७. जहां होम्तउ आगदो । तहां होन्तउ आगदो। कहां होन्तउ - भागदो ॥ ॥ ३५६ ॥ किमो डिहे वा॥ अपभ्रंशे किमोकारान्तात्परस्य सेर्डिहे इत्यादेशोवा भवति ।। अपशभा अपरान्त किम् १५४ा ५२ ङसि प्रत्ययो डित् इहे એવો આદેશ વિકલ્પ થાય છે. जइ तहो तुट्टउ नेहडा मई सहुँ नवि तिल तार । तं किहे वङ्केहिं लोअणेहिं जोइजउ सय वार ॥ ॥ ३५७ ॥ डेहि ॥ अपभ्रंशे सर्वादेरकारान्तात्परस्य २ः सप्तम्येकवचनस्य हिं इत्यादेशो भवति ।।.. અપભ્રંશમાં સકારાત્ત સર્વાદિથી પર હિજો એ આદેશ થાય છે.

Loading...

Page Navigation
1 ... 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574