Book Title: Laghu Ane Bruhat Prakrit Vyakaran
Author(s): Dalichand Pitambardas
Publisher: Dalichand Pitambardas
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नाइजइ तहिं देसडइ लब्भइ पियहो पमाणु ।
मह आवह तो आणिभइ अहवा तं जि निवाणु ॥ दिवो दिवे । दिविदिवि गङ्गा-हाणू ॥ सहस्य सहु ।
जउ पवसन्वें सहुं न गया न मुभ विओएं तस्सु ।
लजिजइ संदेसडा दिन्ती सुहयःजणस्सु ॥ नहेर्नाहिं।
एत्तहे मेह पिअन्ति जलु एत्तहे वडवानल आवइ ।
पेक्खु गहीरिम सायरहो एक्कवि कणि नाहि ओहहह ॥ ॥ ४२० ॥ पश्चादेवमेवैवेदानी प्रत्युतेतसः पच्छइ एम्बइ जि
एम्वहिं पञ्चलिउ एत्तहे ॥ अपभ्रंशे पश्चादादीनां पच्छइ इत्यादय आदेशा भवन्ति ॥
अपभ्रशभा पश्चात्ने पच्छइ, एवमेवने एम्वइ, एवने जि, इदानीम्ने एम्वहि, प्रत्युतने पञ्चलिउ मने इतस् २०४ने एत्तहे मेवा माहेश थाय छे..
पश्चातः पच्छइ । पच्छइ होइ विहाणु ॥ एवमेवस्य एम्बइ । एम्वह सुरउ समत्तु ॥ एवस्य जिः ।
जाउ म जन्तउ पल्लवह देख्ख कह पय देइ । ... हिअइ तिरिच्छी हर जि पर पिउ डम्बरई करेइ ॥ इदामीम एम्वहिं।
हरि नचाविउ पङ्गणइ विम्हइ पाडिज लोउ । . एम्वहिं राह-पोहरहं जं भावइ तं होउ ।

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