Book Title: Laghu Ane Bruhat Prakrit Vyakaran
Author(s): Dalichand Pitambardas
Publisher: Dalichand Pitambardas

View full book text
Previous | Next

Page 545
________________ (३१६) अपभ्रंशे इवशब्दस्यार्थे नं नउ नाइ नावइ जणि जणु इत्येते षद् भवन्ति ॥ 24पभ्रंशमां इव शहना अर्थभा नं, नउ, नाइ, नावइ, जणि मने जणु ॥ ७ शम्६ थांय छे. नं । नं मल्ल-जुज्झु ससि-राहु करहिं ॥ नउ । रवि अस्थमणि समाउलेण कण्ठि विइण्णु न छिण्णु । चक्के खण्ड मुणालिअहे नउ जीवग्गलु दिण्णु ॥ नाइ। वलयावलि निवडण भएण धण उद्धब्भुअ जाइ । वल्लह-विरह महादहहो थाह गवेसइ नाइ ॥ नावइ । पेक्षेविण मुहु जिण वरहो दहिर नयण सलोणु । नावइ गुरु मच्छर भरिउ जलणि पवीसइ लोण ॥ जणि । चम्पय कुसुमहो मज्झि सहि भसलु पइहउ । सोहइ इन्दनीलु जणि कणइ बइहउ ॥ जणु । निरुवम रसु पिएं पिएवि जणु ॥ ॥ ४४५ ॥ लिङ्गमतन्त्रम् ॥ अपभ्रंशे लिङ्गमतन्त्रं व्यभिचारि प्रायो भवति ।। अपभ्रंशभा लिंग पाणु श सहसाय छ, गय कुम्भई दारन्तु ॥ भत्र पुल्लिङ्गस्य नपुंसकत्वम् ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574