________________
पूजा करने में हिंसा होती है किन्तु परमात्मा के प्रति भक्तिभाव का जो लाभ है, वह कई गुना ज्यादा है। शास्त्रोमें उसके लिये कुँए का उदाहरण दिया है । चलने से थके हए, प्यासे और मैले शरीरवाले मुसाफिर पानी के लिये जब कुँआ खोदतें है, तो शुरुआतमें तो थकान बढती है, प्यास भी ज्यादा लगती है और पसीना भी होता है। परंतु अंत में जब पानी प्राप्त होता है, तब पानी पीने से और स्नान करने से कुँआ खोदने की थकान, प्यास और मैल ही नहीं,
अपितु चलने से हुई थकान आदि भी दूर हो जाते हैं और ताजगी का अनुभव होता है। इसी तरह, परमात्मा की पूजामें भी अजयणा के कारण यदि हिंसा का दोष लगता है तो भी अंतमें प्रभुभक्ति के जो भाव हृदयमें उमडते हैं, उससे वह दोष तो दूर होता ही है, और अनेक गुणोंकी प्राप्ति, पुण्यका बंध भी होता है। प्रश्न : मान लिया की यदि प्रभुभक्ति के भाव उमडते है, तो हिंसा का दोष दूर
हो जायेगा किंतु पत्थर की प्रतिमा की पूजा करने से प्रभुभक्ति के भाव
कैसे उत्पन्न होंगे? उत्तर : जो प्रतिमा को पत्थर की मानता है, उसे तो भाव उत्पन्न नहीं ही होंगे, यह स्वाभाविक है।तिरंगे ध्वजको कपडे का टुकडा माननेवाले पाकिस्तान या अन्य देश के नागरिकोंमें उसके प्रति कोइ देशभक्तिका भाव नहीं उत्पन्न होगा।
परंतु उसे राष्ट्राध्वज के रुपमें देखनेवाले भारतीय नागरिक को तो देशभक्ति के भाव आते ही हैं, यह हम सबके लिए अनुभव सिध्द है। वह उसको वन्दन करेगा, सम्मान करेगा, उसका अपमान करनेवालो पर आक्रमण करेगा एवं उसके गौरव की रक्षाके लिये प्राणोंका बलिदान भी दे देगा।
उसी तरह प्रतिमा को परमात्मा के रुपमें देखनेवाले श्रध्दा संपन्न श्रावक को भक्ति के भाव उमडते ही है,उसमें जरा भी संदेह नहीं, क्योंकि वे परमात्माके पीछे लाखो - करोडो रुपयों का खर्च करते है, अपने व्यस्त कार्यों में से भी भक्ति के लिये समय निकालते हैं।
परमात्मा के मंदिरसे और भी अनेक शुभ भाव उत्पन्न होते हैं, यह भी हम देख सकते हैं। विवेक छोडकर एक-दूसरे को चिपककर चलनेवाला युगल भी जैसे मंदिर की सीडी चडता है, तुरंत विवेक अपनाकर अलग हो जाता है।
भिखारी भी सिनेमा हॉल के बाहर नहीं बैठते, मंदिर के बाहर भीख माँगने बैठते है,
२
200000000002020100
6
208208888888888888888888888