________________
और बादमें सामायिक की, इसमें उन्हें पाप लगेगा, या धर्म होगा?
एक श्रावकको घरमें सामायिक करने की अनुकूलता नहीं है। इसलिये स्कूटर पर बैठकर वह स्थानकमें जाकर सामायिक करते हैं। अब उसमें उन्हें पाप लगेगा कि धर्म होगा? कभी कोई भी संतने व्याख्यान के श्रवण या सामायिक के लिये स्थानकमे स्कूटर/कार से आते हुए श्रावकों को ‘आप तो पाप कर रहे हैं, क्योंकि इसमें हिंसा है' ऐसा कहकर रोका है? यदि नही, तो फिर मात्र परमात्माकी पूजा में हिंसा के नाम से विरोध क्यों ? प्रश्न : यदि शुभ भाव की उत्पत्ति को आगे करकर धर्म में जल-पुष्प आदि की
हिंसा मान्य करेंगे तो फिर बकरे का बलि देने की हिंसा भी मान्य करनी
पडेगी, क्योकि वहाँ पर भी शुभ भाव की उत्पत्ति कही जा सकती है। उत्तर : नहीं, यह संभव ही नहीं। वैद्य का दिया हुआ जहर भी औषधी बन सकता है, जीवन बचा सकता है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि 'जहर भी औषधि ही है- कटोरी भरकर पी लो- आरोग्य प्राप्त होगा।'
इतना जहर तो मौत ही लायेगा, फिर आरोग्य प्राप्ति की संभावना ही नहीं रहेगी। इसी तरह जल-पुष्प आदि की हिंसा मान्य करने से बकरे की हिंसा मान्य नही हो सकती। क्योंकी उसकी हिंसा के लिये इतनी क्रूरता लानी पडेगी कि शुभभावों की मौत ही हो जायेगी। प्रश्न : पर यह समझमें नहीं आया कि जल-फूल की हिंसा में क्रूरता नहीं है और
बकरे की हिंसा में क्रूरता है ऐसा आप किस आधार पर की सकते हैं ? उत्तर : जल-पुष्प आदि एकेन्द्रिय जीव हैं। उनमें अत्यल्प चैतन्य है। वे पीडा को व्यक्त नहीं कर सकते- प्रतिकार भी नहीं करते । इसलिये उनकी हिंसा बिना कोई क्रूरता से हो सकती
जबकि बकरा पंचेन्द्रिय है । वह भयभीत होता है, उसे मौत की कल्पनासे गहरा दुःख होता है। भागने के लिये जी-जान की कोशिश करता है। प्रतिकार करता है-चीखता है। खून की धारा बहती है। यह देखने के बाद भी उनकी हिंसा क्रूरता के बिना संभवित ही नहीं।
___ इसलिये जो क्रूर नही बन सकते ऐसे सज्जन हाथमें छुरी देने पर भी बकरे को मार नहीं सकते।