Book Title: Kya Jinpuja Karna Paap Hai
Author(s): Abhayshekharsuri
Publisher: Sambhavnath Jain Yuvak Mandal

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Page 16
________________ sssssssss886660860888888888866600308666666666666666 6 6 भक्तिमें जयणा का पालन भक्ति के द्रव्यों को कम करने से नहीं होता बल्कि उसमें रात को रसोई न करने से, बाजार की चीजें न लाने से, जमीकंद आदि अभक्ष्य पदार्थों का त्याग करने से होता है। उसी तरह परमात्माकी भक्तिमें जयणा का पालन फूलों की संख्या कम करने से नहीं होता अपितु फूलों को न कुचलने से, सूई न लगाने से होता है। फूलों की संख्या कम करना, यह जयणा नहीं, अविवेक है, कृपणता है, जैसे साधर्मी भक्तिमें द्रव्यों की संख्या कम करना यह कृपणता है। प्रश्न : पर्वतिथि के दिनों में आप हरी सब्जी-फल आदिका त्याग करने की प्रेरणा करते हैं । फिर पूजा में फल-फूल आदिका उपयोग भी उन दिनों में नहीं करना चाहिए न? उत्तर : पर्वतिथिके दिनों में सांसारिक कार्यों के लिये बाहर न आने जाने की प्रेरणा भी की जाती है। तो फिर व्याख्यान के श्रवण हेतु भी नहीं आना-जाना चाहिए । ऐसा प्रश्न कोई करें तो क्या जवाब देंगे? स्वयं उपवास करनेवाला भी साधु-साध्वी भगवंतो को गोचरी वेराता ही है ना? . सांसरिक कार्यों के लिये हिंसाका निषेध करना यह अलग बात है और धर्मकार्य, जहाँ शुभ भावों का लाभ बहत ज्यादा है, उसके लिये अल्प हिंसा करना अलग बात है। और पर्वतिथियोंमें हरी सब्जी / फल आदि का त्याग इसलिये भी करना है कि वह आसक्ति। राग का कारण है। परमात्मा की भक्तिमें उसका समर्पण करने से तो उल्टा त्याग होनेवाला है, राग नहीं। फिर उसका निषेध क्यों करें ? प्रश्न : माना की पूजामें भी धर्म है, लाभ है, किन्तु उसमें हिंसा का अल्प दोष तो है ही। जबकि सामायिक में मात्र लाभ है, दोष बिलकुल नहीं। फिर सामायिक ही करनी चाहिए न ? उत्तर : तो फिर सामायिक के सिवा और कोई भी धर्म नहीं करना चाहिए । चाहे प्रवचन का श्रवण हो, स्थानक का निर्माण हो या गुरुवंदन हो । क्योंकि सभी में अल्प हिंसा का दोष तो है ही। लेकिन ऐसा तो कोई नहीं मानता। फिर मात्र पूजा के लिये ही निषेध क्यों? हाँ शक्ति हो तो जीवनभर की सामायिक ही करनी चाहिए। दीक्षा ले लेनी चाहिए। 8--22550568 ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००

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