Book Title: Kya Jinpuja Karna Paap Hai Author(s): Abhayshekharsuri Publisher: Sambhavnath Jain Yuvak MandalPage 14
________________ प्रकारकी पूजा से भक्ति के भाव बढते जाते हैं । प्रश्न : मेहमान या साधु भगवंत को द्रव्यों की आवश्यकता है, परमात्मा तो वीतराग है। उन्हें द्रव्यों की आवश्यकता नहीं, फिर द्रव्यपूजा से क्या लाभ होगा ? उत्तर : वैसे तो भगवान को अपने स्तुति - गुणगान भजन आदि की भी कोई आवश्यकता नहीं है, तो भी हम क्यों करतें हैं ? इस पर विचार कीजिए । स्तुति हो - भजन हो - या द्रव्यपूजा हो - सभी का उद्देश्य परमात्मामें अपने मनको तल्लीन करने का है। हर प्रकारकी पूजा परमात्मामें मन को तल्लीन करने में सहायक बनती ही है और इसलिये ही अनेक शुभ फलों की जनक भी है ही । प्रश्न : परंतु एकाग्रता तल्लीनता तो मात्र स्तुति- भजन से भी आ सकती है। उसके लिये जल-फूल आदि की हिंसा करने की क्या जरूरत है ? - उत्तर : यूँ तो यह भी कहा जा सकता है कि तल्लीनता मात्र नामस्मरण से आ सकती है, फिर स्तुति - भजन की क्या जरुरत है ? उसमें भी कभी क्षमा गुणकी, कभी वितरागता की, कभी साधना की । ऐसे तरह-तरह की स्तुतियों की क्या जरुरत है ? वास्तविकता यह है कि हमारा मन विविधता के प्रति आकर्षित होता है । इसलिये ही पूजा में विविधता बताई गयी है। जितने अलग-अलग तरीकों से मन प्रभुमें मग्न बनें - तल्लीन रहे - उन सभी तरीकों से उसे मग्न बनाना यही ज्ञानियोंका अभिप्राय - अलग अलग प्रकारकी पूजा के पीछे है। विविधता के कारण ही मन परमात्मामें लंबे काल तक तल्लीन रह सकता है, यह हमारा अनुभव भी है। नहीं तो वह भी प्रश्न किया जा सकता है कि मात्र सामायिक से साधना हो सकती हैं। दान- तप आदि धर्मों की क्या जरुरत ? गुरुवंदन - प्रवचन श्रवण आदि के लिये हिंसा करने की क्या जरूरत है ? प्रश्न : सभी धर्मों का अपना अपना महत्व है, अपना अपना विशिष्ट फल है । इसलिये उसमें हिंसा होती हो तो भी अंतमें वह लाभकारी है ही । उत्तर : ठीक उसी तरह हर एक द्रव्यूजा का अपना विशिष्ट फल है ही । १२Page Navigation
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