Book Title: Kya Jinpuja Karna Paap Hai Author(s): Abhayshekharsuri Publisher: Sambhavnath Jain Yuvak MandalPage 21
________________ उनमें से कभी किसीने मंदिर-मूर्ति-पूजाका विरोध नहीं किया है। प्रश्न : यह संभावित है कि पूर्वाचार्यों ने मूर्तिपूजा का कदाग्रह पकड लिया हो। इसलिये उसका विरोध नहीं किया हो। उत्तर : दो हजार साल तक सभी आचार्य भगवंत कदाग्रही थे उनमें कोई भी पाप से डरता नहीं था और ४००-५०० वर्ष पूर्व हुए संत ही निष्पक्ष थे पाप से डरते थे ऐसा मानना यह बहुत बडी मूढता-सांप्रदायिक कदाग्रह के सिवा क्या हो सकता है ? __यह सब जानते और मानतें हैं कि जिनशासनमें मूर्तिपूजा का विरोध पिछले ५०० सालों में ही हुआ है। इसलिये ही उन लोगों के पास न कोई प्राचीन शास्त्र है, न कोई इतिहास इस पूर्ण चर्चा का सारांश यह है कि • जिनमंदिर-मूर्ति और शाश्वत है । • आगमों में मूर्तिपूजाका विधान है ही और निषेध कही नहीं है। • मूर्तिपूजामें अनेक शुभ भावोंकी उत्पत्ति,सम्यग्दर्शनादि गुणोंका लाभ और पुण्यबंध के लाभ के सामने हिंसा का दोष अत्यंत अल्प और नगण्य है। हिंसा के नाम पर पूजा का विरोध करनेवाले भी, उससे अधिक हिंसा अन्य धर्मके लिये करते ही हैं। अतः मूर्तिपूजाका विरोध कदाग्रह प्रेरित है। यह स्पष्ट है। इसलिये हर श्रावकका यह कर्तव्य है कि मूर्तिपूजा में श्रध्दा रखना और भावपूर्ण भक्तिके साथ पूजा करना । 'मूर्तिपूजा पाप है ' ऐसे उत्सूत्र वचनोका प्रतिकार करना। . इस विषयकी अधिक जानकारी के लिये देखिए १. 'प्रतिमा पूजन' -पू.पं.श्री भद्रंकरविजयजी म.सा. २. मूर्तिपूजाका प्राचीन इतिहास'-पू.मु.श्री ज्ञानसुंदरजी म.सा. इस पुस्किामें दिये गये शास्त्रपाठों की एवं शिलालेखों की जानकारी भी इन पुस्तकोमें दी हुई है। जिनाज्ञा के विरुध्द कुछ भी लिखा गया हो, तो मिच्छामि दुक्कडं।Page Navigation
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