Book Title: Kya Jinpuja Karna Paap Hai
Author(s): Abhayshekharsuri
Publisher: Sambhavnath Jain Yuvak Mandal

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Page 17
________________ प्रश्न : श्रध्दासंपन्न श्रावकों को जिनपूजा से लाभ होता है ऐसा मान लिया। किन्तु जिन्हे प्रतिमा और पूजा में श्रध्दा ही नहीं होती, उन्हे तो शुभ भाव नहीं आने से लाभ होनेवाला ही नहीं। तो उनके लिये तो पूजा का निषेध ही करना पडेगा क्योंकि उन्हें मात्र हिंसा का दोष ही लगेगा। उत्तरः यदि कोई नास्तिक मनुष्य ऐसा कहे कि 'मुझे गुरुदेव पर श्रध्दा नहीं। इसलिये वंदन करने में शुभ भाव नहीं आते। इसलिये मुझे तो आने-जाने की हिंसा का दोष ही लगेगा। इसलिये में वंदन करने नही जाऊंगा।' तो आप क्या कहेंगे? यही न,कि 'भैया आप श्रध्दा रखों, वंदन करने चलो, श्रध्दा स्वयं उत्पन्न होगी, बढती जायेगी।' इसी तरह हम भी यही उपदेश करेंगे कि प्रभु की प्रतिमा और पूजा में श्रध्दा रखिए, पूजा किजिए, आपकी आत्माका कल्याण होकर ही रहेगा। प्रश्न : यदि मूर्तिपूजा से आत्माका कल्याण ही होता है, तो शास्त्रोंमें - आगमों में मूर्तिपूजा का विधान क्यों नहीं है ? उत्तर : यह पूर्णयता गलत मान्यता है कि आगमो में मूर्तिपूजा का विधान नहीं है, देखिए१. श्री ठाणांग सूत्र के चौथे स्थानमें नंदिश्वर द्वीप पर रहे हुए जिनमंदिरों का वर्णन है। २. श्री समवायांग सूत्र के सत्रहवें समवायमें जंघाचरण और विद्याचरण मुनिओं द्वारा नंदिश्वर द्विप के -जिनमंदिरो की यात्रा का वर्णन है। ३. श्री भगवती सूत्र के तीसरे शतक के पहले उद्देश्यमें चमरेन्द्र के अधिकारमें जिनप्रतिमा के शरण की बात है। ४. श्री उपासकदशांग में आनंद श्रावक के अधिकारमें जिनमुर्तिका उल्लेख है। ५. श्री रायप्पसेणिय सूत्र में सुर्याभदेवने की हुई जिनप्रतिमा की पूजा का वर्णन है। ६. श्री ज्ञाताधर्मकथांग में द्रौपदीद्वारा की गयी जिनपूजा का वर्णन है। श्री जीवाभिगम सूत्रमें विजयदेव की जिनप्रतिमा पूजा का वर्णन है। यह तो कुछ नाम बतायें। इसके अलावा सैंकडो शास्त्रोंमें मूर्तिपूजा की बात है ही। .......... .

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