Book Title: Kya Jinpuja Karna Paap Hai
Author(s): Abhayshekharsuri
Publisher: Sambhavnath Jain Yuvak Mandal

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Page 7
________________ उनके दर्शन-वंदनार्थ हजारो श्रावक जाते है । उसमें हिंसा नहीं होती? यदि उस हिंसाके नुकसान से, गुरुभक्ति के भाव का लाभ ज्यादा है ऐसा मानते है, तो जिनमंदिरको भी यही न्याय क्यो नही लगेगा? यह संत भी अपने गुरुजनों की प्रतिकृती (फोटो) छपवाते हैं- श्रावकोंको वितरीत करते हैं। उसमें हिंसा नहीं होती? यदि गुरुदेवकी फोटो के दर्शन से भक्ति के भाव उमडते हैं (यह लाभ ज्यादा है ) तो फिर मात्र परमात्माकी प्रतिमा के दर्शन-पूजन में हिंसा के नाम से विरोध करना, यह सांप्रदायिक मूढता नही है ? आखिर फोटो भी एक प्रकार की प्रतिमा (थ्री डाइमेन्शनल के बदले टु डाइमेन्शनल) ही है ना? प्रश्न : किंतु ऐसा नियम तो नहीं कि पूजा करने से शुभ भाव की उत्पत्ति होगी ही। और यदि नहीं हुई , तो हिंसा के दोष का भी नुकसान ही होगा। इसलिये पूजा नहीं ही करनी चाहिए। उत्तर : वैसे तो गुरुदेव की फोटो आदि के दर्शन से भी शुभ भाव उत्पन्न होने का कोई नियम नहीं हैं। उतना ही नहीं, प्रवचन सुनने से हरकोई को सम्यग्ज्ञान होगा ही, ऐसा भी कोई नियम नहीं। फिर प्रवचन के लिये आने-जाने की हिंसा का दोष भी लगेगा क्या? ऐसा कोई नहीं मानता। ज्ञानप्राप्ति की संभावना के लाभ को नजरमें रखते हुए प्रवचन सुनने को धर्मक्रिया ही माना जाता है। फिर परमात्मा की प्रतिमा के पूजनसे भी अनेक शुभ भावों की उत्पत्ति की संभावना को नजरमें रखते हुए, उसे लाभकारी ही मानना आवश्यक है। और पूजा करनी ही चहिए, ऐसी श्रध्दा बनी रहती है, नियम बना रहता है, यह भी कोई कम लाभ नही है। यदि हिंसा के नाम से पूजा का विरोध करेंगे, तो हिंसा तो सभी कार्योमे है ही, चाहे स्थानक का निर्माण हो, साधर्मी भक्ति हो, संघ का सम्मेलन हो। तो इन सबका विरोध क्यों नहीं किया जाता? प्रश्न : यह सब तो आवश्यक कार्य है, अतः हिंसा भी आवश्यक है। जबकि 88888888888888888888888888888 Pla

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