Book Title: Kural Kavya Author(s): G R Jain Publisher: Vitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP View full book textPage 5
________________ कुरल काव्य - - -- - - शास्त्री ने उसका हिन्दी एवं संस्कृतः पुसवाद कर उसे प्रकाशित किया था। वह ग्रन्थ इतना लोकप्रिय हुओं कि उसका प्रकाशन आचार्य विद्यानन्द जी मुनिराज की प्रेरणा से सम् 1988 में श्री कन्या भारती नही: दिल्ली से भी प्रकाशित हुआ जिम्मका प्रश्रम संस्करण पत्काल समाप्त हो गया और सन 1992 तकः उसको घार. संस्करण निकले। और अब पाँचवाः संसकारण प्रकाशमान की तैयारी में है। !", |..:.:. .. "उसकी लोकप्रियता एवं' माँग देखकर श्री अॅमा दि." अन्न विद्वत्परिषद्ध की कार्यकारिणी ने भी निर्णय लिया कि विद्वल्परिषद की ओर सभी उसयम प्रकाशन किया जाये। अतः परिषद के संगठन मंत्री श्री धिमनकुमारीजी सोस्या टीकमगढ़ ने उसको प्रकाशन हेतु आर्थिक संसाधन जुटा2 तथा उसके प्रकाशन कप व्यवस्था भी की। इसको लिए थे साधुवाद के पात्रा हैं। विश्वास है किास्वाध्याय प्रेमी सज्जम इस प्रकाशन या स्वारात करेंगे।और-विद्वत्परिषद के आगामी कार्यक्रमों को सफाल मित्राने हेतु प्रश्साहित करते रहेंगे । भजामि जैन अध्यक्ष || आरा बहार राम I fini :", अभा. दि. जैन विद्वत्परिषद 61470017 !!: !:: :: :. .!.: ..:: :. 31 | !!::|| .:. ... .' |::.. .:. IFFi:: :: :: :.: . : . . ::.!: ...:::. : ... 1 : I:: : : :: ::id:-:. ..: :: iii. ::: ::::: :: i ri::; .Page Navigation
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