Book Title: Kural Kavya
Author(s): G R Jain
Publisher: Vitrag Vani Trust Registered Tikamgadh MP

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Page 3
________________ - कुल काव्य गई। बड़ी मात्रा हुई और ती : गेले. न परिवद के संग्लन मंत्री की हैसियत से आश्वासन दिया कि लगभग 5 ग्रथों का प्रकाशन समाज के गणमान्य जनो से सम्पर्क कर मैं भ० महावीर स्वामी की जंयती तक साकार कर दूंगा। प्रसन्नता है कि मात्र 2 माह के प्रयास से समाज के जिनवाणी आराधक दानी महानुभावों ने मेरे अरग्रह को स्वीकार किया और मैं अपने विद्वत परिषद को दिए गए आश्वासन को साकार कर सका। अ. भा दि. जैन विद्वत परिषद एवं वीतरागयाणी ट्रस्ट जि. टीकमगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में मेरी प्रेरणा से 5 प्रकार के विशाल ग्रंथों का प्रकाशन संभव हुआ है। इस कार्य की साकारता के लिए महानतम राष्ट्रसंत आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज का सातिशय आशीर्वाद विशेष कार्यकारी है। विद्वत परिषद के तत्वावधान में प्रकाशित ग्रंथ देश के विद्वानों मुनिराजों तथा सुधीजनों तक दातारों की ओर से निःशुल्क प्रदाय किए गए हैं। जबकि जन जम के लिए दीतरावाणी ट्रस्ट रजि. टीकमगढ़ से प्रकाशित यह सभी ग्रंथ मूल्य से प्राप्त किये जा सकेगे। आशा है जनकल्याण के हित में यह ग्रंथ अवश्य भव्यों का भार्ग प्रशस्त करेगा। ___ भगवान महावीर स्वामी के 26 सौ की जयंती 6 अप्रैल 2001 को परम ज्योति महावीर महाकाव्य. त्रिषष्ठि चित्रण दीपिका नन्दीश्वर द्वीप वृहद विधान, कुरल काव्य एवं श्री मंदिर वेदी प्रतिष्ठा विधि जैसे लोकोत्तर एवं विशालकाय ग्रंथों का प्रकाशन विद्वत परिषद की गरिमापूर्ण गतिशीलला का प्रशंसनीय कार्य है। परिषद अपने एक वर्ष के जयंती महोत्सव में शेष 21 प्रकार के ग्रथों को प्रकाशित कर अपने पावन उद्देश्य की साकारता में सफलता प्राप्त करेगी। ऐसी पूर्ण सम्भावना है | वीतराग याणी ट्रस्ट टीकमगढ़ द्वारा अब तक प्रकाशित अन्यान्य 40 प्रकार के लोकोत्तर ग्रंश्यों का जन मानस ने व्यापक उपयोग किया । अशा है उसी श्रृंखला में इस ग्रंथ से लाभ प्राप्त करेंगे। सैलसागर. टीकमगढ़ प्रतिष्ठाचार्य पं. विमलकुमार जैन सौरया श्री महावीर जाती एम. ए. शास्त्री आ रत्न 6/4/2001 अध्यक्ष–वीतरागवाणी ट्रस्ट रजिस्टर्ड

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