Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 4
________________ कुमार विदा - रशतकम् ॥ ॥ १ ॥ कही बतावारने कवि नामयी ओळखवामां आवे छे. ते कवि रस अनेकारना चमत्कारथी पोतानी वाक्शक्तिने फोरवे ते कविता कहेवाय बे. आवी रीते कवि ने कवितानो संबंध बे, तेने जे यथार्थ रीते जाणे बे, ते सहृदय वाचक (विधान् ) कहेवाय बे. ए काव्य रसनुं दिव्य गान आखा विश्वमां निरंतर चालु बे, अने दरेक क्षणे अने स्थळे तेना अद्भुत आनंदनो आस्वाद सर्व अधि कारीने मळ्या करे बे. " संस्कृत साहित्य काव्यना केटला एक नेदो आपला बे. तेमां महा काव्य अने खंग काव्य एवा वे नेद पण दर्शाव्या, अने तेना जुदा जुदा लक्षणो आपेक्षा बे. आ ' कुमार विहार शतक एक काव्यमां आवी शके बे. या काव्यना कर्त्ता महानुभाव श्री रामचंद्रगणीए पोतानी साधारण नैसर्गिक काव्य प्रतिनाथी आ लघु काव्यने सर्व रीते अलंकृत कर्तुं छे. अने अगाध साहित्य नरेली महा संस्कारी अनुपम देव गिरामां ग्रथन करी तेने रसभरित बनावेयुं छे. दरके वर्णनीय वस्तुने सूक्ष्म दृष्टि लोकतां जाणे तेनुं रहस्य पोतानी सूक्ष्म बुद्धिना तनुं अने स्वानुजवना सूक्ष्म तत्त्वानुं मिश्रण करी उपजावी काढयुं होय एम लागे छे. वळी मनुष्यना स्वनावनी सूक्ष्म लागणीने, विधानोनी जिज्ञासाने अने जैन भक्तोनी आंतर जावनाओने अनायासेा महाकवि

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