Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 7
________________ १एएए मांा प्रमाणे सखे -“वीर संवत १६एए ना वर्षमां कार्तिक शुक्ल हितीयाने दिवसे हस्त नकत्रनो सूर्य यतां श्री पाटण नगरमां जेमने त्रीश वर्ष अने सत्यावीश दिवस राज्य करता थयेला ," एवा कुमारपाले पोताना पिता त्रिजुवनपालना नामथी प्रासाद कराव्यो हतो. ते प्रासादने बोतेर देव कुलिका हती. तेमां चोचीश रत्ननी, चोवीश पिता तथा सुवर्णनी, अने चोवीश रुपानी–अतीत, अनागत अने वर्तमान जिनेश्वरोनी प्रतिमाओ हती. मुख्य प्रासादनी अंदर एकसो पचवीश अंगुल प्रमाण चंकांतमणिनी प्रतिमा हती. सर्वत्र कलशो अने स्तनो सुवर्णना हता. एकंदर उंनु कोटी अव्यनो व्यय करी गुर्जरपति कुमारपाले ते प्रासाद कराव्यो हतो. ते महाराजाए मोटो उत्सव करी श्री हेमचंप्रसूरिनी पासे ते चैत्यमां श्री पार्श्वनाथ प्रजुनी प्रतिष्टा करावी हती. आ शतकनी रचना केवी रीते थइ तेने माटे अवचूरिकार आ प्रमाणे बखे डे-एक वखते श्री हेमचंधसूरि पोताना मुख्य शिष्य श्री रामचंगणी अने वीजा मुनिओना परिवार साथे नागपुरमां चातुर्मास्य रह्या हता. ते चातुर्मास्य निर्विघ्ने प्रसार थया पठी महाराजा कुमारपाले तेमने परिवार साथे पाटणमां आववाने विनंति करवायी तेश्रो पाटणमां पधार्या हता. या वखते आंबमदे, बा

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