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कुमार विहा रशतकम् ॥ ॥ ६ ॥
विशेषार्थ -
- श्लोकथी कविए श्री पार्श्वनाथ प्रजुनी ज्ञानलक्ष्मी वर्णवी आशीर्वचन रूप मांगल्य कहेनुं छे. श्री पार्श्वनाथना केवळ ज्ञानने दर्पानी उपमां आप बे. जेम दर्पणमां बधा पदार्थो देखाइ आवे बे, तेम तेमना केवळ ज्ञानरूपी दर्पणमां बधा पदार्थो देखाइ आवे बे. अर्थात् ते केवळ ज्ञानथी सर्व नूत, जविष्य अने वर्त्तमानना बनावो जोइ शकाय बे. जे वस्तु आवरणवाळी होय के आवरणरहित होय, दूर होय के नजीक होय ते बधी वस्तु केवलज्ञानी जोइ शकेबे अने जाणी शके े. आवा उत्तम केवलज्ञानधारी भगवंतनी तिथी कल्याण प्राप्त थाय बे, पाप दूर थाय छे, सुख मळे बे, तेज वधे बे, सत्कीर्त्ति वधे बे, अने गौरव तथा वैभव प्राप्त थाय बे- तेथी ग्रंथकार ए उत्तम पदार्थों प्राप्त थवानी आशीष आपे छे. अने ते साधे सूचछे के, नामां केवलज्ञाननुं सामर्थ्य होय, ते प्रनु कल्याणादि वस्तु