Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 13
________________ कुमारविहारशतकम्. तेजः पुष्णातु पार्थो दुरितविजयि वः शाश्वतानंदबीज संक्रांतः सप्तरत्न्यां भुजगपतिफणाचक्रपर्यकभाजि । कर्माण्यष्टौ समंतात्त्रिभुवनभवनोत्संगितानां जनानां यच्छेत्तुं तुल्यकालं वहति निजतनुं कृप्तसप्तान्यरूपाम् ॥ १॥ अंवचर्णिः -स पाधों मुग्तिविजयि शाश्वतानंदबीजं तेजो वो युष्माकं पुष्णातु । नुजगपतिफणाचक्रपर्यकनाजि सप्तरत्न्यां संक्रांतो यः विलुवनजनतोत्संगितानां जनानां तुष्यकालं समंतात् अष्टौ कर्माणि उत्तुं कृतसप्तान्यरूपां निजतनुं वहति इत्यन्वयः । सप्तानां रत्नानां समाहारः ‘डयां

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