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| , उता मतिज्रमयरी के प्रमादयी जो काइ स्वाना था होय तो अमे मिथ्या पुष्कृत पूर्वक क्षमा मा
गीए बीए. अने जेवटे इच्छीए जीए के आ शतकना माधुर्यतुं आस्वादन करनार गुर्जर वाचकोने अने संस्कृत अन्यासकोने गुर्जर। गिराना नाषांतररुपे आ शतक कंगनूषणरुप थाओ.
___ "श्री आत्मानंद नुवन."
वीर संवत २४३६ आत्म संवत १४ विक्रम संवत १९६६ मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया.)
प्रसिझकर्ता. श्री जैन आत्मानंद सभा.
जावनगर