Book Title: Kumarvihar Shatak
Author(s): Ramchandra Gani
Publisher: Jain Atmanand Sabha

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Page 9
________________ नामां पदनी प्रसन्नता होय, अने नवीन नवीन अर्थ उठता होय, एवी कविता के मां तादृश चित्र समान चित्र आलेख्यं होय, तेवी उत्तम कविता या शतकमां आद्यंत जोवामां आवे छे. तेने माटे महानुभाव रामचंद्रगणीने पूर्ण धन्यवाद घटे बे. बेवटे या प्रसंगे मारे जावं जोइए के, भारतवर्षना महोपकारी स्वर्गस्थ श्री विजयानंद सूरि (आत्मारामजी महाराज ) ना प्रशिष्य महामुनिश्री हंस विजयजी महाराज तथा तेमना अनुयायी पंन्यास श्री संपत् विजयजी महाराजनी खास प्रेरणाथी ने सहायथी या ग्रंथ प्रगट करवाने मे शक्तिमान् थया बीए. ते महानुभावे केटली एक शुद्ध मतो मेळवी आपी हती, एटबुंज नहीं पण या ग्रंथनी शुद्धिने माटे पूर्ण काळजी राखी तेना लेखने जाते तपासी ग्रंथना गौरवमां सारी वृद्धि या देवी योजना करी आपी हती. निःस्वार्थ उपकार वृत्तिने धारण करनारा ने जैन साहित्यने खींवानी अंतरंग इच्छा राखनारा ए महानुभाव मुनिवरो के जेओ पोताना गुरुना नामथी कित एव अमारी संस्याने पवित्रकार्यमा सहाय भूत थाय बे. तेनो मे हृदयर्थी आजार मानीए बीए. उक्त मुनि महाराजाम्रो ज्यारे कच्छ मांगवीमां चार्तुमाश रहेला ते वखते मांगवीना श्री संघ

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