Book Title: Kumarvihar Shatak Author(s): Ramchandra Gani Publisher: Jain Atmanand Sabha View full book textPage 6
________________ कुमारविहारशतकम्।। ॥३॥ स्थितिनो इतिहास यथार्थ रीते जाणवामां आवी शक्यो नथी, मात्र तेमनी चारित्रावस्थानो केटरोएक वृत्तांत आ प्रमाणे उपलब्ध थऽ शक्यो ने. महानुनाव रामचंगणी विक्रमना बारमा सैकाना अंतथी ते तेरमा सैकाना आरंज सुधीमां विद्यमान हता. तेत्रो कळिकाळ सर्वज्ञ श्री हेमचं. प्रसूरिना प्रख्यात शिष्य हता. तेमने 'प्रबंध शतक कत्त' एवं बिरुद मळ्युं हतुं. तेमनी व्याख्यान करवानी शक्ति सर्वोत्तम हती अने तेयी तेओ लोकप्रिय थइ पड्या हता. गुर्जरपति जैन महाराजा श्री कुमारपाले अणहिलपुर पाटणमा पोताना पिताश्री त्रिजुवनपालना नामयी रचावेना प्रासादनी अंदर श्री हेमचंसूरिए प्रतिष्टित करेला श्री पार्श्वनाथ प्रनुने अष्ट नमस्कारात्मक स्तवन रुप वस्तु स्वरुपने उद्देशीने ते महानुनावे आ अद्लुत काव्य लेखनी योजना करेली . अने तेनी अंदर ते कुमारविहार-चैत्यनी अद्लुत शोजानुं चमत्कारी वर्णन आपेटु जे. जो के केटनेक स्थळे अमर्याद अतिशयोक्ति दर्शावेनी, तथापि कविताना ओज, प्रास विगेरे गुणोने अपने अने एक उत्तम कविओना संप्रदायने अपने ते अतिशयोक्ति सहृदय विधानानां हृदयने आकर्षक अने वस्तु स्वरुपनी पोषक बनेन्नी . जे कुमारविहार चैत्यनु आ महानुजावे वर्णन करे , तेने माटे अवचूरिकार पण वीर संवतPage Navigation
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