Book Title: Kumarvihar Shatak Author(s): Ramchandra Gani Publisher: Jain Atmanand Sabha View full book textPage 3
________________ प्रस्तावना. अनादि अनंत विश्वक्रमने विलोकतां एम तो अनुभव थाय छे के, आ विश्वनी अंदर रहेला आत्माओनी शक्ति मां अनेक चमत्कारो रहेला बे. ते सर्वमां बुद्धिना चमत्कारो विशेष बळवान् जे. क्षायोपशमथी सतेज थयेली बुद्धि केवा केवा वाणीना विझासो प्रगट करे बे, ते आर्य जैन साहित्यमा प्रत्यक्ष देखाय बे, अने तेथीज जैन साहित्य आर्यावर्तमां उत्कृष्ट पद जोगवे बे. विश्व हस्तामलकवत् जोनारा महात्माओ – केवली ओ कहे छे के, आत्मानी गुफा रुप अंतःकरणमां दिव्यगान - वाद - शब्द प्रति सूक्ष्म बतां दिगंतगामी शक्तिवाळा अनुभवाय बे, ते काव्य रुपे बाहेर प्रगट थइ बीजाने आनंद रसना सागर रूप बने छे, जेना श्रवण - मननथी धर्म, नक्ति, नीति अने व्यवहारनी शुद्ध जावनाओ प्रगट थाय छे. आ उपरथी जोवामां आवे छे के, ए अंतरनुं दिव्य गान को अनुपम अने रसमय तरंगमां चाली रहुं बे. तेमांथी जेनी जेवी शक्तिं ते सर्वे ग्रहण करी कही शके बे, अने ते माटे प्रमुकPage Navigation
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