Book Title: Kshir Tarangini
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Ramlal Kapur Trust

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Page 3
________________ प्रो३म् प्रकाशकीय वक्तव्य क्षीरतरङ्गिणी पाणिनीयव्याकरण के धातुपाठ की उपलब्ध वृत्तियों में सब से प्राचीन वृत्ति है । यह सर्वप्रथम सन् १९३० ई० में जर्मन विद्वान् लिबिश द्वारा रोमन अक्षरों में जर्मन भाषा में लिखित टिप्पणियों सहित छपी थी। इस पर पं० युधिष्ठिर मीमांसक ने बहुत परिश्रम किया और कई योग्य व्यक्तियों को इस कार्य के लिए प्रेरणा भी की। जो अनेक कारणों से सफल न हो पाई । अन्त में उन्होंने स्वयं ही स्वास्थ्य ठीक न रहने पर भी और बहुत सी प्रतिकूलताएँ होते हुए भी इस पुस्तक का सम्पादन बहुत सफलता और योग्यता पूर्वक किया है जो इन के सम्पादकीय वक्तव्य तथा ग्रन्थ में लिखी विद्वत्तापूर्ण टिप्पणियों से प्रकट है। देखने को यह व्याकरण का एक छोटा सा ग्रन्थ धातुपाठ, और उसकी वृत्ति ही प्रतीत होता है। पर गहरी दृष्टि से देखा जाये तो इस विषय पर इतना प्रकाश आज तक किसी विदेशी या स्वदेशी विशेषज्ञ ने नहीं डाला हैं। इसकी गहराई को कृतभूरि परिश्रम विद्वान् ही समझ सकेंगे, ऐसा मेरा मत है। विद्वान् इनकी सब मान्यताओं के साथ सहमत न भी हों, तो भी यह कार्य बहुत ही उत्कृष्ट कोटि का हुआ है ऐसा मानना होगा। श्री रामलाल कपूर ट्रस्ट अमृतसर के संचालकों ने ऐसे ग्रन्थरत्न को प्रकाशित कर भारतीय प्राचीन साहित्य की महती सेवा की है। यह ट्रस्ट इस दिशा में महान कार्य कर रहा है । ट्रस्ट ने इस ग्रन्थ के तैयार कराने और दूरी पर छापने आदि में भारी कष्ट सहन किया है। ट्रस्ट की ओर से पं० युधिष्ठिर जी.को धन्यवाद देता हं जो इन्होंने इतना भारी काम ट्रस्ट की ओर से किया। उनके सहायक पं० रामर्शकर भट्टाचार्य व्याकरणाचार्य एम० ए० को भी उनकी सहायता के लिए धन्यवाद देता हूं। ___ ग्रन्थ को शीघ्र प्रकाशित करने का श्रेय श्री बा० हंसराज जी कपूर, मन्त्री रामलाल कपूर ट्रस्ट को है। मोती झील, ब्रह्मदत्त जिज्ञासु वाराणसी (भारत) [सं०२०१४] प्रधान-श्री रामलाल कपूर ट्रस्ट,

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