Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 14
________________ प्रकाशक की ओर से [ 8 पिन्डवाडा (५) शा भूरमलजी सरेमलजी पिन्डवाडा (६) शा मन्नालाल रिखबाजी लुणावा (७) शा हिम्मत मल रुघनाथमलजी बेडा इन ७ सदस्यों की वि० सं० २०१८ में 'भारतीय प्राच्य तच्च-प्रकाशन समिति' की स्थापना की । समिति के सदस्यों ने कर्म साहित्य को जयपुर और ब्यावर में छपवाना शुरु किया। करीब तीन साल काम चलता रहा, काम सुन्दर होने पर भी जिस गति से हो रहा था सम्भव है उस गति से आज तक एक ग्रन्थ भी पुरा नहीं छप पाता। अतः छपाई शीघ्र व सुन्दर हो इस वास्ते समिति के सदस्यों ने समिति का निजी प्रेस पिन्डवाडा में लगवाया । साहित्य व छपाई आदि का कार्य समिति के सदस्यों के शुभ प्रयत्न से ठीक तरह से चलता था व सदस्यों की उदारता और प्रयत्न से आर्थिक समस्या भी हल हो रही थी । मगर कर्मसाहित्य का प्रकाशन व प्रचार आदि का प्रस्तुत कार्य अति विशाल होने से सदस्यों की संख्या बढाना आवश्यक समझकर सं० २०२१ की साल में शेठ जीवतलाल प्रतापशी आदि महानुभावों को समिति के सदस्य बनायेआज हमारी समिति का ट्रस्टीमण्डल इस प्रकार है १ शेठ रमणलाल दलसुखभाई (प्रमुख) २ शेठ माणेकलाल चुनीलाल ३ शेठ जीवतलाल प्रतापशी ४ शा० खूबचंद अचलदासजी ५ शा० समरथमल रायचंदजी (मंत्री) शा० शान्तिलाल सोमचन्द ( भाणाभाई ) (मंत्री) ७ शा॰ लालचन्द छगनलालजी (मंत्री) ८ शेठ रमणलाल वजेचन्द ९ शा० हिम्मतमल रुगनाथमलजी १० शेठ जेठाभाई चुनीलाल घीवाले ११ शा० इन्द्रमल हीराचंदजी १२ शा ० मन्नालालजी रिखवाजी खंभात ई बम्बई पिन्डवाडा पिन्डवाडा Jain Education International खंभात पिन्डवाडा अहमदाबाद लुणावा ज्ञानपिपासु जनता को जानकर हर्ष होगा कि स्वल्पकाल में 'खवगसेढी' व 'ठिइबंधो' ये दो ग्रन्थरत्न हम पाठकों के करकमल में अर्पित कर रहे हैं । 'रसबंधो' तथा 'पएसबंधो' जो दो ग्रन्थ छप रहे हैं, वे भी स्वल्पसमय में पाठकों के करकमलों में अर्पित किये जायेंगे । 1 For Private & Personal Use Only बम्बई पिन्डवाडा आत्मकल्याण में हेतुभूतस्वाध्याय के लिये प्रस्तुत ग्रन्थराशि अत्यन्त उपयोगी है, इसका विशेष ख्याल ग्रन्थों की प्रस्तावना विषयपरिचय व भावानुवाद पढने पर पाठक पा सकेंगे । आत्मिक शान्ति देने वाले ताविक आध्यात्मिक ग्रन्थों का आलेखन करके भगवंतों ने अपना कर्तव्य बजाया है । आलेखित ग्रन्थों को ताडपत्र व ताम्रपत्र आदि पर प्रतिलेखित करवाकर ज्ञानभंडारों में सुरक्षित रखना व यन्त्रालय आदि द्वारा मुद्रित करवाकर मुमुक्षुजनसमाज में उसका प्रचार करना यह हमारा गृहस्थों का फर्ज है। शास्त्रों में सुनते हैं कि www.jainelibrary.org

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