Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 22
________________ ग्रन्थ मुद्रित थया पछो: -- न्यायविशारद - सिद्धान्तवाचस्पति वात्सल्यवारिधि आगम-कर्म प्रकृति- लोकप्रकाशादिशास्त्रोना मर्मज्ञ पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयोदयसूरीश्वरजी महाराजाओ क्षपक श्रेणिग्रन्थना बधाए फर्मा वृद्धावस्था साथै नरम तबियतमां पण सारी रीते तपासी, संशोधन करी आपी मारा पर मोटो उपकार क्यों छे. अवसरे अवसरे अनेक उपयोगी सूचनाओ पण तेओश्रीओ करी छे. पूज्य पंन्यासप्रवरश्री नोतिप्रभविजयजी महाराजे उत्साहथी पोताना समयनो भोग आपी पूज्य आचार्य भगवंतने ग्रन्थ वांची संभलावीने अशुद्धिनी नोंध करी छे, तेथी आ बन्ने पूज्योथी घणो उपकृत छ . शुद्धिपत्रकम सहायको - - आगमप्रज्ञ पू० आचार्यदेव श्रीमद् विजय जम्बूसूरीश्वरजी महाराजाओ शरूआतना केटलाक फर्माओनु', तथा पू० मुनिराजश्री अशोक वि० महाराजे शरूआतना ४० फर्माओ वाचन करी शुद्धिपत्रक तैयार करी आप्यु ं छे. पू० मुनिराजश्री हेमचन्द्रवि० म० तथा मुनिराजश्री वोरशेखरविजयजीओ समग्र ग्रन्थनुं वांचन करी अशुद्धिनु संमार्जन कयुं छे. महेसाणा जैन श्रेयस्कर मंडल पाठशालाना प्राध्यापक सुश्रावक पुखराजजी, वढवाणनगरनी पाठशालाना अध्यापक सुश्रावक अमुलखभाई, राजनगरनी पाठशालाओना शिक्षको सुश्रावक रसिकभाई तथा बाबुभाईओ शरूआतना केटलाक फर्माओनु निरीहपणे शुद्धिपत्रक कर्यु छे. पंडितवर्य सुश्रावक धीरजलाल डाह्याभाई अ संपूर्ण ग्रन्थनु संशोधन करी, शुद्धिपत्रक करी आपी श्रुभक्ति अपूर्व लाभ लीधो छे. स्थल. सुश्रावक शकरचंद छोटालाल नो बंगलो १३, श्रीपालनगर, आश्रमरोड. सम्पादकीय अंते उपर्युक्त सर्व पूजनीय आचार्यदेवादि मुनिभगवंतो तथा सुश्रावक अध्यापको प्रत्ये यथोचित कृतज्ञभाव प्रकट करु छु आ ग्रन्थनु संशोधन तथा शुद्धिपत्रक अनेक विद्वानोनी पासे करावयु छे. छतां आ ग्रन्थमां जिनाज्ञा विरुद्ध जे कांई देखाय, दृष्टिदोष, प्रेसदोष के छद्मस्थताना कारणे रही गअल भूलो जणाय, ते वाच को मने जरूर जगावे अज विनंति, भूलो बदल मिच्छामि दुक्कडं आपी सौ कोई आ ग्रन्थनु पठनपाठन वधु ने वधू करे अने मोक्षसुख प्राप्त करे अ ज ओक मङ्गलकामना. अमदावाद १३ स २०२२ महावदि ६ गुरुवार. Jain Education International (15 लि० पूज्यपाद कृपानिधि आचार्य देव श्रीमद्विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजश्री शिष्यरत्नस्याद्वादनयप्रमाणविशारद तपोनिधि पू०पन्न्यास प्रवर श्री भानुविजयजी गणिवर्यना शिष्यरत्न पू० मुनिवर्यश्री जितेन्द्रविजयजी महाराज नो शिष्य मुनि गुणरत्नविजय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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