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प्रस्तावना
[ 47 अहीं कदाच प्रश्न थाय के अरिहंतादिने नमस्कार क्रमपूर्वक केम नथी कर्यो, तेनु समाधान मे छ के श्लोकरचनामां छंदना हिसाबे व्युत्क्रमथी पण पद गोठवाय छे, अथवा पंचपरमेष्ठीने अनानुपूर्वीथी पण नमस्कार थई शके छे. अ सूचववा माटे ग्रन्थकारे आ रीते नमस्कार करेल छे, वर्तमानमां आ रीते अनानुपूर्वी नमस्कार करवानी पद्धति पण चालु छे, पंचपरमेष्ठिजापना पूर्वानुपूर्वी पश्चानुपूर्वी अने अनानुपूर्वीथी कुल १२० भांगा थाय छ, एमां २७ मो भांगो आ नमस्कारनो छ. अथवा 'गुणवसह' ना बदले 'गुणहरवसह' होय अने 'जदिवसह' नो अर्थ यतिवृषभ विशेष नाम तरीके करीए तो पण त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता तरीक यतिवृषभ सिद्ध थता नथी, बल्के ग्रन्थकारे मंगल तरीके जिनेश्वरोने अने गणधर भगवंतोने नमस्कार कर्यो छे, तेनी साथे गुणधराचार्य अने यतिवृषभाचायेने पण नमस्कार कर्यो एम सिद्ध थाय छे, जयधवलाकारे पण सम्यक्त्वअनुयोगद्वारना मंगलाचरणमां आवी ज रीते नमस्कार कर्यो छे अने ते गाथा पण आ गाथाने मळती ज छे. जुओपणमह जिणहरवसहं गणइरवसहं तहेव गुणहरवसहं । दुसहपरिसहविसहं जइवसहं धम्मसुत्तपाढरवसहं ॥
___ (जयधवलाप्रस्तावना पृष्ठ ३६) । आपणे जोई शकी) छीओ के तिलोयपन्नत्तिनी 'पणमह' वाळी अंतिम गाथा अने आ गाथा लगभग सरखी छे, तेथी जयधवलानी गाथा उपरथी तिलोयपन्नत्तिनी आ गाथानी रचना थई होवानु जणाय छे, केम के वर्तमान तिलोयपन्नत्तिमां घणी गाथाओ बीजा बीजा ग्रन्थोमांथी सीधी अथवा थोडा फेरफार साथे लेवामां आवेली छे जे आगळ आ प्रस्तावनामां बताववामां आवशे. धवलाना पण अनेक गद्य आलावा अक्षरशः तिलोयपन्नतिमा छे. आ वधा उपरथी छेल्ली गाथामां पण जयधवलानु अनुकरण थयुहोवानु विशेषे करीने सिद्ध थाय छे,अटले प्रस्तुतगाथा पण जयधवला पछी त्रिलोकप्रज्ञप्तिनी रचना थई होवान जे अनेक प्रमाणोथी आगळ सिद्ध करवामां आवशे, तेने ज वधु पुष्ट करे छे.
आम आ त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता तरीके यतिवृषभनु नाम सिद्ध थई शकतु नथी अटलु ज नहि सामान्यबुद्धिथी विचारीओ तोपण ग्रन्थकर्ता पोते पोताना ग्रन्थनी प्रशस्तिमा पोताना वडीलोनी स्तुतिकरे ओ बने पण पोते पोताने नमस्कार करे अबु बनतु नथी, जे समजी शकाय अवी वस्तु छे. 'जदिवसह' नो अर्थ त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता यतिवृषभ करो तो शुग्रन्थकर्ता पोते पोताने नमस्कार करे छे ? जो ग्रन्थ कर्ताने पोतानु नाम जणावQ होत तो माथे पोताना गुर्वा दिनु नाम जोडत, पण तेवूकई ज जणातुनथी. आ बधु जोतां आ गाथा परथी त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता तरीके यतिवृषभनी कल्पना करवी अने तेना आधारे त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता तेमज कषायप्राभूतचूर्णिना कर्ता अंक ज छे अबी कल्पना करी कपायप्राभूतचूर्णिनी रचनानो काल
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