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प्रस्तावना
[ 49 (१) 'त्रि० प्र० नी चर्णि स्वरूपार्थनु तथा करणस्वरूपनु प्रमाण केटलु छ ? आठ. हजारप्रमाण' आ गाथाना प्रथम त्रण चरणनो अर्थ थयो अने चोथा चरण 'तिलोयपण्णत्तिणामाए' नो अर्थ यो थाय के 'नामथी प्रस्तुत ग्रन्थ त्रिलोकप्रज्ञप्ति छे' अम त्रण चरण अने चोथा चरणने जुदां पाडी अर्थ थई शके छ.
(२) अथवा त्रि० प्र० नामनी प्रज्ञप्तिना (केमके 'तिलोयपन्नत्तिणामा' अ स्त्रीलिंगशब्द छे,) चर्णिस्वरूपार्थ तथा करणस्वरूपनु प्रमाण केटलु छ ? आठहजार श्लोक प्रमाण छे अो पण प्रस्तुत आखा श्लोकनो अर्थ थई शके छे. अहीं चूर्णि तरीके कषायप्राभूतचूर्णिनी कल्पना करवी ते अप्रस्तुत छे ज्यारे त्रि० प्र० चूर्णिनी कल्पना करवी अ प्रस्तुत छ, अने त्रि० प्र० नामर्नु प्राचीन सूत्र छे ते तो वर्तमान त्रि० प्र० मां आवता 'तिलोयपन्नत्तिसुत्ताणुसारी' पद उपरथी सूचित थाय छ, अटलुज नहीं पण धवलाना सूचन परथी प्राचीन त्रि० प्र० होवानी पण विशेष संभावना छे.
(३) अथवा 'किं जत्तं' ना स्थाने "किज्जन्त" पद होवानी संभावना विद्वानो करे छे. किज्जन्तं अटले क्रियमाणं (करातु-गगातु), अटले गाथानो अर्थ आ रीते थाय-'त्रिलोकप्रज्ञप्तिनामनी प्रज्ञप्तिनु चूर्णि स्वरूपार्थकरणरूप प्रमाण गणतां आठहजार श्लोक थाय अर्थात् त्रिलोकप्रज्ञप्तिसूत्रोनो चूर्णिस्वरूपे जे अर्थ कयों छे तेनु प्रमाण गणतां आठहजार श्लोक प्रमाण थाय छे. अटले आ गाथा द्वारा प्राचीन त्रि० प्र० सूत्रनी चर्णिन प्रमाण बताव्यु होय, अम लागे छे. कषायप्राभृतचूर्णि तथा त्रिलोकप्रज्ञप्तिना कर्ता अक नथी ते सूचवतां
अनेक प्रमाणो वर्तमानमां उपलब्ध त्रिलोकप्रज्ञप्ति अने कषायप्राभूतचूर्णिना रचयिता अंक नहीं होवानु सावित करतां अनेक प्रमाणो मळे छे, तेमांनां केटलांक अमे अत्रे रजू करी छी
(१) त्रिलोकप्रज्ञप्ति पृ० ७६४ उपर मनुष्यलोकनी बहार रहेला चन्द्रादिनु प्रमाण लाववानु वर्णन गयमां आवे छे, ते लगभग अक्षरशः धवला भा० ४ पृ० ७६३. ७६६ पर छ, अने ते पाठ त्रिलोकप्रज्ञप्ति करतां धवलामां वधु संगत छ, केम के अमां ग्रन्थकारे स्वयंभूरमण समुद्रनी पेली बाजु पण अक राजलोकना अर्धच्छंदनी मान्यता रजू करी छ, अर्थात् स्वयंभूरमण समुद्रनी वेदिकाना अंते ति लोकनो राज संपूर्ण थतो नथी ए बताव्युछे. आ मान्यता धवलाकारनी पोतानी ज छे. अटलुज नहीं पण आ मान्यतामा पूर्वनां परिकर्मादि सूत्रोनो विरोध पण आवे छे. धवलाकारे पोते का छे के आ मान्यता अन्य आचार्यना उपदेशनी परंपरानुसारी नथी, परंतु ज्योतिषदेवना २५६ सूचिअंगुलरूप
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