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प्रस्तावना
लेखक-पूज्य मुनिराजश्री हेमचन्द्रविजयजी महाराज अनादिकाळथी संसारमः परिभ्रमण करी रहेला जीवोने ज्यां सुधी "क्षपकश्रेणि" नो प्राप्ति थती नथी, त्यां सुधी घातिकर्मनो क्षय थतो नथी अने केवलज्ञान तथा केवलदर्शननी प्राप्ति थती नथी. केवलज्ञान अने केवलदर्शननी प्राप्ति विना कोई पण जीवनी संसारमांथी मुक्ति थती नथी, जे कोई आत्माओओ मुक्तिनी प्राप्ति करी छे, करी रह्या छे अने करशे, ते बधाय आत्माओ 'क्षपकश्रेणि' उपर आरोहण करीने ज मुक्ति प्राप्त करी शक्या छे, करे छे अने करशे. आम "क्षपकश्रेणि" से मुक्ति प्राप्त करवा माटेनु असाधारण कारण छ, तो आपणने सहेजे प्रश्न थाय के "क्षपकश्रेणि" शी वस्तु हशे ?
आत्मा अनादिकाळथी मलिन अवस्थावाळो छे. आत्मानी आ मलिनता नवना कर्मनी माथे संबद्ध थवाना कारणे छ, आत्मा साथे कर्मनो संबंध लोह-अग्निवत् अकमेक थयेलो छे. ओ कर्मना विपाक(फल)भोगाया अजर आ आत्माने पण जन्म मृत्युनी घटमालमा फसावं पड़े छे. आ संसारनीरंगभूमि उपर नवनवा वेश धारण करवा पड़े छे याने स्वरूपे अरूपी आत्माने पण तेवा तेवा शरीर धारण करी, क्यारेक मनुष्य, तो क्यारेक देव, क्यारेक तियच तो वळी कोई वखते नारक तरीके भमवु पड़े छे. आत्मामां केवलज्ञान, केवलदर्शनादि अनंतगुणो होवा छतां ओ वधा गुणो आ कर्मसंबंधना कारणे लगभग आवराई गया छे. तेथी आन्मानी सहजस्वभाषनी स्थिति दवाई गई छे अने कर्मविपाकाश घणी विराम बनी गई छे. चक्रवर्तीनी भिखारी अवस्था जेट ली करुगाने पात्र छे अना करतां अनंतशक्ति अने गुणोना स्वामी अवा आत्मानी वर्तमान कर्मपराधीन, निर्बल, गुणहीन अने दोषपूर्ण अवस्था अनेकगुणी करुगाने पात्र छे.
भगवान श्रीतीर्थकरदेवोओ पण क्षपकश्रेणि द्वारा घातिकर्मनो सर्वथा क्षय करी अनादिकाळथी संसारमा मलिनावस्थामा रहेला पोताना आ माने निर्मल बनायो, केवलज्ञान अने केवलदर्शनादि अनंतचतुष्कने प्राप्त कयु अने जगतना जीवो पण 'क्षपकश्रेणि' द्वारा कर्मक्षय करी शके अ माटे धर्मतीर्थनी स्थापना करी.
भगवान महावीरदेवनी वर्तमान तीर्थस्थापना मगधदेशमा अपापानगरीनी नजीकमां ऋजुवालिकानदीना तीरे भगवान श्रीमहावीरदेवने केवलज्ञाननी प्राप्ति थई. ते पछी आपानगरीनी पासे महसेनवनमा प्रभुओधर्मतीर्थनी स्थापना करी. ते आरीतेः
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