Book Title: Khavag Sedhi
Author(s): Premsuri
Publisher: Bharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti

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Page 13
________________ **-प्रकाशक की ओर से - तपोगच्छगगनदिनमणि आबालवृद्ध तपस्वी विद्वान शासनप्रभावक करीबन २५० मुनिगणके माननीय नेता दीर्घसंयमी सिद्धान्तमहोदधि पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वरजी म. सा० ने वि० सं० २०१५ का चातुर्मास सुरेन्द्रनगर में किया। वहाँ आपके शिष्यप्रशिष्यों के आगमादिशास्त्रों के पठनपाठन का अवलोकन कर कोई भी अत्यन्त प्रसन्न हुए बिना व बारबार जिनेश्वरदेव एवं जिनशासन के ज्ञान व चारित्रमार्ग का मन ही मन अनुमोदन किये बिना नहीं रह सकता था । इसी अर्से में 'जैन साहित्य विकास मण्डल' अंधेरी-बम्बई के मेनेजिंग ट्रस्टी माननीय महाशय अमृतलाल कालिदास दोशी B. A. जो कि पूज्य श्री के मुनिओं द्वारा कुछ साहित्य का संशोधन करवाने के लिये आये थे। प्रासंगिक बातचीत से कर्मसाहित्य के विस्तृतसर्जनको जानकर आपकी निश्रा में लिखे गये व भविष्य में लिखे जाने वाले 'खवगसेढो' आदि कर्मसाहित्य को प्रकाशित करने का सहर्ष स्वीकार किया । पूज्य आचार्यदेवश्री का वि० सं० २०१६ का चातुर्मास शिवगंज में और वि० सं० २०१७ का चातुर्मास पिन्डवाडा में हुआ । उन दिनों में भी श्रीयुत अमृतलाल कालीदास भाई पिन्डवाडा आये और कर्मसाहित्य के प्रकाशन की पूज्यश्री से अनुमति प्राप्तकर बम्बई गये व अपनी 'जैन साहित्य विकास मण्डल' संस्था की मीटिंग बुलाकर प्रस्तुत साहित्य अपनी संस्था की ओर से प्रकाशित करवाने का निर्णय किया। बड़े सौभाग्य की बात है कि पूज्यश्री से कर्मसाहित्यविषयक परामर्श करते ही पिन्डवाडा के धर्मप्रेमी भाईयों को पूर्वकालीन परनारीसहोदर परमाहत श्रीकुमारपाल महाराजा, श्रीवस्तुपाल, तेजपाल और ३६००० सोनामहोरके न्योछावर से श्रीभगवतीमूत्र का श्रवण करने वाले मांडवगढ के महामात्य श्रीपेथडशाह आदि श्रुतभक्त महाश्रावकों का स्मरण हो आया और श्रुतभक्ति से प्रेरित हो पूज्य श्री से प्रस्तुतकार्य जिसे कि श्रीयुत अमृतलाल कालीदास दोशी ने करवाने का स्वीकार किया था, पिंडवाडा के भाईयों ने करवाने की नम्र प्रार्थना की। प्रथम तो पूज्यश्री ने पिन्डवाडा के भाईयों की मांग का स्वीकार न किया, क्योंकि अमृतलालभाई से साहित्य के प्रकाशनादि संबंधी बातचीत पहेले हो चुकी थी, मगर जब पिन्डवाडा के साधर्मिक बंधुओं का अत्यन्त आग्रह व उत्साह देखा तो आपने श्रुतभक्ति का अपूर्व लाभ प्रदान कर उन बन्धुओं को अनुगृहीत किया । इस मंगल कार्य में पिन्डवाडा श्रीसंघ का पूर्ण सहयोग रहा। प्रस्तुत कर्मसाहित्य के प्रचार-प्रकाशनादि विराट कार्य की जिम्मेवारी को समझकर पिन्डवाडा के उत्साही भाईयों ने-(१) शेठ रमणलाल दलसुखभाई खंभात (२) शा समरथमल रायचंदजी पिन्डवाडा (३) शा लालचंद छगनलालजी पिन्डवाडा (४) शा खुबचंद अचलदासजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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