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अब दिगम्बर सम्प्रदाय एवं खरतरगच्छ के अतिरिक्त श्वेताम्बरीय गच्छों में भी जितने मुनि-नामान्त पदों का उल्लेख देखने में आया है उनका विवरण भी यहां प्रस्तुत किया जा रहा है ।
दिगम्बर - नन्दि, चन्द्र, कीर्ति, भूषण - ये प्रायः नन्दि संघ के मुनियों के नामान्त पद हैं । सेन, भद्र, राज, वीर्य - ये प्रायः सेन संघ के मुनि नामान्त पद हैं । ( 'विद्वद् रत्नमाला' पृष्ठ १८ )
उपकेश गच्छ की २२ शाखाएँ :
१. सुन्दर
२. प्रभ
५. सार
६. चन्द्र
९. तिलक
१०. कलश
१३. कल्लोल
१४. रंग
१७. राज
२१. आदित्य
१८. कुमार
२२. कुंभ
३. कनक
७. सागर
११. रत्न
१५. शेखर
१९. देव
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४. मेरु
हंस
८.
( ' उपकेशगच्छ पट्टावली', जन साहित्य संशोधक )
उपर्युक्त नन्दी सूचियों से स्पष्ट है कि कहीं-कहीं दिगम्बर विद्वान् यह समझने की भूल कर बैठते हैं कि भूषण, सेन, कीर्ति आदि नामान्त पद दिगम्बर मुनियों के ही हैं वह ठीक नहीं है । इन सभी नामान्त पदों का व्यवहार श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भी होता रहा है ।
१२. समुद्र
१६. विशाल
२०. आनन्द
नाम परिवर्तन में प्रायः यथाशक्य यह ध्यान भी रखा जाता है कि मुनि की राशि उसके पूर्व नाम की रहे । बहुत स्थानों में प्रथमाक्षर भी वही रक्खा जाता है । जैसे सुखलाल का दीक्षित नाम सुखलाभ, राजमल का राजसुन्दर, रत्नसुन्दर आदि ।
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तपागच्छ :
श्री लक्ष्मीसागरसूरि (सं० १५०८ - १७ ) के मुनियों के नामान्त पद सोमचारित्र कृत 'गुरुगुगरत्नाकर' काव्य के द्वितीय सर्ग में इस प्रकार लिखे हैं
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