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खरतर-गच्छ दीक्षा नन्दी सूची
२७ फैला था, जिसे सामूहिक क्रियोद्धार द्वारा दूर करने के लिये श्री जिनचन्द्र सूरि जी कृत संकल्प थे। बीकानेर के मंत्रीश्वर संग्रामसिंह वच्छावत की प्रबल वीनति से बीकानेर पधार कर उनकी अश्वशाला में ठहरे; जिसे मंत्रीश्वर ने अपनी माता की स्मति में पौषधशाला-बड़ा उपाश्रय घोषित कर दिया। तीन सौ यतिजन जो शिथिलाचारी थे उनमें से १६ शिष्य बने। अवशिष्ट को यतिवेश त्याग कर, मस्तक पर पगड़ी बांधकर (मत्थे-रिणमहात्मा) बनने को मजबर किया। श्री सकलचंद्र गणि प्रथम शिष्य 'चंद्र' नंदि में स्थापित हुए। अवशिष्ट शिष्यों के नाम अज्ञात हैं। इत : पूर्व संवत् १६०६ में बीकानेर में उ० कनकतिलक, वाचक भावहर्ष, वा० शुभवर्द्धन ने क्रियोद्धार किया था, शद्ध साध्वाचार के नियम बनाये थे । पर, यह सामूहिक शिथिलाचार परिष्कार का महत्वपूर्ण प्रयोग हुआ।
ये श्री जिनचंद्रसूरि जी अकबर एवं जहांगीर बादशाह को प्रतिबोध देने वाले चतुर्थ दादा साहब थे। इनका जीवन चरित्र हमने ५५ वर्ष पूर्व सप्रमाण विस्तार पूर्वक लिखा था जिसका गुजराती अनुवाद गणिवर्य बुद्धिमुनि जी द्वारा तथा संस्कृत काव्य' उपाध्याय लब्धिमुनि जी द्वारा रचित प्रकाशित है।
श्री जिनचंद्रसूरि द्वारा गच्छ की बड़ी उन्नति हुई । त्याग प्रधान संयम मार्ग का प्रभाव था जिससे गच्छ में दो हजार से ऊपर साधु हो गए। आपने विम्नोक्त ४४ नंदियों में दीक्षा दी थी :
१. चंद्र १२ निधान २३ मन्दिर ३४ समुद्र २. मंडण १३. रत्न २४. कल्लोल ३५. कुंजर ३. विलास १४. विजय २५. धरम । ३६. दत्त ४. मेरु १५. तिलक २६. वल्लभ ३७. पति ५. विमल १६. सिंह २७. नंदन ३८. कल्याण ६. कमल १७. हर्ष २८. प्रधान ३६. शेखर ७. कुशल १८. प्रमोद २६. लाभ ४०. कीर्ति . विनय १६. विशाल ३०. वर्द्धन
४१. मेरु ९. हेम २०. सुन्दर ३१. जय ४२. सेन १०. राज २१. नन्दि ३२. प्रभ ४३. सिंह ११. आनंद २२. सिंधुर ३३. सागर ४४. कलश
इनमें प्रथम चंद्र नंदि में सकलचंद्र तथा अंतिम कलश नंदि में पुण्यकलश, लालकलश आदि मुनि जन दीक्षित थे।
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