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खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची
माघ शु० १२ को फलौधी पार्श्वनाथ तीर्थ में इनको वाचनाचार्य पद जिनचन्द्रसूरि ने अलंकृत किया ।
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० १३७७ जेठ वदि ११ को पाटण में श्री राजेन्द्र चन्द्राचार्य ने तेजपाल रुद्रपाल कारित महोत्सव पूर्वक श्री जिनचन्द्रसूरि जी के पट्ट पर इनको स्थापित कर जिनकुशलसूरि नाम प्रसिद्ध किया ।
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सं० १३७८ माघ सुदि ३ को भीमपल्ली में आपने देवप्रभ मुनि को दीक्षा दी । वाचनाचार्य हेमभूषण गणि को उपाध्याय पद और पं० मुनिचन्द्र गणि को वाचनाचार्य पद दिया ।
सं० १३८१ मिति आषाढ बदि ६ को शत्रुञ्जय तीर्थ पर देवभद्र, यशोभद्र को दीक्षित किया। पाटण आकर वैशाख बदि ६ को इन देवभद्र, यशोभद्र को बड़ी दीक्षा दी । एवं सुमतिसार, उदयसार, जयसार मुनि और धर्मसुन्दरी, चारित्रसुन्दरी को दीक्षित किया । जयधर्म गणि को उपाध्याय पद दिया गया ।
सं०१३८२ वैशाख सुदि ५ को विनयप्रभ, मतिप्रभ, सोमप्रभ, हरिप्रभ ललितप्रभ मुनि एवं दो क्षुल्लिकाओं को दीक्षा दी ।
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सं० १३८३ फागुण बदि ६ से १५ दिन तक उत्सवों के साथ छः दीक्षाएँ सम्पन्न हुई - न्यायकीत्ति, ललितकीर्ति, सोमकीत्ति, अमरकीत्ति, ज्ञानकीर्ति, एवं देवकीर्ति ।
सं० १३८६ माह सुदि ५ को देवराजपुर (देरावर) में 8 क्षुल्लक ३ क्षुल्लिकाओं को दीक्षा दी :
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१. भावमूर्ति, २. मोहमूर्ति, ३. उदयमूर्ति, ४. विजयमूर्ति, ५. हेममूर्ति, ६. भद्रमति, ७. मेघमूर्ति, ८. पद्ममूर्ति, हर्षमूर्ति क्षुल्लक एवं कुलधर्मा, विनयधर्मा, शीलधर्मा क्ष ुल्लिकाएं। इस समय ७७ श्रावक-श्राविकाओं ने विविध व्रत धारण किए थे। इन वर्षों में श्री जिनकुशल सूरिजी सिन्ध के अनेक स्थानों में विचरे थे । सं० १३८५ फाल्गुन सुदि ४ को पदस्थापना, क्षुल्लक क्षुल्लिकाओं को दीक्षादि दी । कमलाकर गणि को वाचनाचार्य पद दिया ।
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