________________
खरतरगच्छ दीक्षा नन्दी सूची
५०० द्रम से माला ग्रहण की। सं० १२१८ उच्चानगरी में ऋषभदत्त, विनयचन्द्र, विनयशील, गुणवर्द्धन, मानचन्द्र ५ साधुनों, जगश्री, सरस्वती, गुणश्री आदि साध्वियों को दीक्षा दी । देवभद्र की पत्नी को भी दीक्षित किया । प्रांशिका में मुनि नागदत्त को वाचनाचार्य पद दिया ।
जिनपतिसूरि :
इनका जन्म सं० १२१० में विक्कमपुर में, दीक्षा सं० १२१७ फा०सु० १०, पदारोहण सं० १२२३ का० सु० १३ को हुआ | वाचनाचार्य पद धारक जिनभद्राचार्य को आचार्य पद देकर द्वितीय श्रेणी का आचार्य बनाया । पद्मचन्द्र, पूर्णचन्द्र को दीक्षित किया । सं० १२२४ में विक्रमपुर में गणधर, गुणशील, पूर्णरथ, पूर्णसागर, वीरचन्द्र, वीरदेव को क्रमशः ३ नन्दियां स्थापित कर दीक्षा दी | जिनप्रिय मुनि को उपाध्याय पद दिया । सं० १२२५ पुष्करणी में सपत्नीक जिनसागर, जिनाकर, जिनबन्धु, जिनपाल, जिनधर्म, जिनशिष्य व जिनमित्र को दीक्षा दी। विक्रमपुर ग्राकर जिनदेवगण को दीक्षा दी । सं० १२२७ में उच्चा नगरी पधारकर धर्मसागर, धर्मचन्द्र, धर्मपाल, धर्मशील, धनशील, धर्ममित्र एव साथ ही धर्मशील की माता को भी दीक्षित किया । जिनहित मुनि को वाचनाचार्य पद दिया ।
श्री जिनपतिसूरि ने मरुकोट पधारकर शीलसागर, विनयसागर और उनकी बहिन अजितश्री को संयम व्रत दिया । सं० १२२८ में सागरपाडा पधारे ।
सं० १२२६ सागरपाड़ा में मणिभद्र के पट्ट पर विनयभद्र को वाचनाचार्य पद दिया ।
सं० १२३० में विक्रमपुर से विहार कर स्थिरदेव, यशोधर, श्रीचन्द्र, अभयमति, प्रासमति, श्री देवी को दीक्षा दी ।
सं० १२३२ में पुनः विक्रमपुर ग्राकर भाण्डागारिक गुणचन्द्र गणि के स्तूप की प्रतिष्ठा की । फिर प्रासिका पधारे तो उस समय साथ में ८० साधु थे । धर्मसागर, धर्मरुचि को दीक्षा दी । व्याघ्रपुर में पार्श्वदेव गणि को दीक्षित किया ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org