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जंगल के पास सभी एकचित होते हैं। दूर वृक्ष के नीचे ही आचार्य श्री ध्यानमग्न हैं। सभी आचार्यश्री के ध्यान खुलने की प्रतीक्षा मे हैं।
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अरे भाई ! हम तो प्रवचन सुनने आए थे, परन्तु मुनि -राज तो ध्यान में लीन हैं, और मुझे देर हो रही है।
हाँ भैया! प्रवचन से हमें ज्ञान प्राप्तः होगा। सुख का मार्ग मिलेगा ।
हाँ! तुम सत्य कहते हो । साप्पुजनों या सज्जनों की संगति को धनव्यय, 'कर के भी प्राप्त करना, चाहिए 1
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कोण्डेश से कुन्द कुन्द
पर हम तो प्रवचन सुनकर ही जायेंगे। आज कुछ देर से दुकान खोलेंगे तो क्या अनर्थ होगा। प्रवचन सुनकर हम लाभ ही लाभ होगा।
भाई ! तुम कुछ भी कहो अब में और अधिक समय व्यर्थ करना नहीं चाहता ! ' आचार्य का भी कुछ कर्तव्य, है, कि इतने लोग अपना फॉर्य छोड़कर यहाँ भारत हैं।,
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