Book Title: Kaudesh se Kundkund
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 21
________________ कौन्डेश से कून्द कुन्द - 19 विचारमग्न पदम उठकर आचार्य के सम्मुख पहुंचा.. अरे! यह बात मैंने अब (तक नहीं सुनी ।अपूर्वधात है) (आचार्यवर। आपके घन्य मुनिदशा! (हे भव्य ! तुम्हारे उपदेश से मैं संसार विचार ना उत्तम का स्वरूप जान गया हूँ।) (मेरे जीवन में ऐसी दशा कान कब होगी? हनाथ! मुझे दीक्षादान है,किन्नु परिजनों दीजिए । की अनुमति प्रथम है। NO 000000004 माँ ! क्या तुम मुझे अच्छापुत्र मानती हो, मेरा हित चाहजी हो और अनंत काल तक मेरी ही मां(बने रहनाचाहती हो। हाँ पद्म ! क्या बात है ?? आज नुम ऐसी गंभीर (बाने क्यों कर रहे है। (माँ ! मैने मुनि होने का निश्चय किया है। अचानक पुझसे मुनि (मैं सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर रहना | बनने की बात सुन मा (चाहता हूं। तुमसे दीक्षाकी आज्ञा-चारता आज्ञाचास्ता || सेडानी का हृदय वियोग हूँ | तुम मुझे की कल्पना से ही तड़प आज्ञा देगीन नहीं नहीं। गया। उसने तरह-तरह ऐसा नहीं से प्रम को समझाने (बोलो पदम! का प्रयत्न क्रिया, किन्तु (अभी तुम्हारी) सबव्यर्थ । पदम ने पहने-खेलने उढ निश्चय कर लिया की आयु 30 था। माँ का प्रयास विफल रहा तो उसके नेत्रों से अश्रुधारा फूट निकली..। सभी सेठानी को देखने लगे।

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