Book Title: Kaudesh se Kundkund
Author(s): Yogesh Jain
Publisher: Mukti Comics

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Page 23
________________ 21 कौण्डेश से कुन्द कुन्द | तुम तो कैसी धर्म की बातें करती थी। अब कैसे सिसफकर रो रही हो? पONAL KMATKA कौन कहना है कि मैं रोती) हूँ। अरे। निर्मोही पुत्रकी सिंह गर्जना से मोटी माँ का मोड नेत्र-पथ से यह कर पुत्र के पद प्रक्षालित कर रहा है। (फिर ये आंसू क्यों गिर रहे हैं? 00०००० ये आंसू नहीं भैया जन्म-मृत्यु को जीतने वाले पुत्र पर दोनों नेत्र सेजल भर कर महा मस्तकाभिषेक कर रहा I (और सुनो पद्म ! तुम्हें मेरे ममत्य की सौगन्ध, तुम (अनन्त काल तक मेरे ही पुत्र रहोगे। जाओ में तुम्हें (भवनाशिनी जैनेश्वरी दीक्षा की सहर्ष अनुमति प्रदान करती हूं। 5 ठीक है माँ ! मैं जानता था नुम अवश्य अनुमति) दोगी । तत्वज्ञानी जो हो। (और मेरी गुळी !

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