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सम्पादकीय
प्रातः स्मरणीय आचार्य कुन्दकुन्द भारत देश के महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सन्त हैं। भारतीय समाज पर उनका अविस्मरणीय अनगिनत उपकार है। आज से 2000 वर्ष पूर्व उन्होंने ही भारतीय साहित्यिकों को साहित्य की सुरक्षा, संरक्षण और संवर्द्वन करना सिखाया है। आत्मविद्या के महान वैज्ञानिक कुन्दकुन्द ने जीवन की सत्यानुभूतियों की चिंतन शैली' पर चिंतन करके उसमें नयी शोध-खोज कर भारतीय जन-मानस को नयी दिशा प्रदान की है।
भगवान महावीर के शासन के अन्तिम श्रुत-केवली भद्रबाहु के शिष्य कुंदकुंद ने बाल्यावस्था में ही राग-द्वेष आदि विकारों को ललकारते हुए वीतरागी नग्न दिगम्बर दशा अंगीकार करके मोही जीवों को चमत्कृत कर दिया था। सचमुच में ही बाल्यावस्था का उनका यह चमत्कार नमस्कार के योग्य था। सम्पूर्ण विश्व के जीवों को अपनी मजबूत फौलादी पकड़ करने वाले मोह को लोहे के चने चबाने वाले ये दूध के दांतो वाली कुन्दकुन्द की बाल्यावस्था, स्वयं में चमत्कार है। उनके जीवन चरित्र को प्रस्तुत करने वाली इस कामिक्स की प्रस्तुति के रुप में मेरा नमस्कार है, और चमत्कारी कुन्दकुन्द की उम्र के पाठक बच्चों को जो इसको पढ़कर अपना जीवन सुधारेगें, ज्ञानवान बनेगें, उन्हें हमारा सत्कार है, सत्कार है।
" डॉ. योगेशचन्द्र जैन
हमारा आगामी प्रकाशन "तीर्थका श्रृषभदेव"