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कौण्डेश से ' मुक्ति कॉमिक्स कुन्द कुन्द
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बस एक बार और
आँसू पोंछ ले माँ (पुन:जन्म लेकर कष्ट
नहीं दूंगा।
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प्रकाशकीय "कौण्डेश से कुण्दकुण्द का द्वितीय संस्करण श्री कुण्दकुण्द दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंडल ट्रस्ट नागपुर के 'सत्साहित्य प्रकाशन एवं विक्रय केन्द्र के माध्यम से प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त प्रसन्नता है कि हिन्दी के प्रथम संस्करण की अतिशय सफलता के पश्चात द्वितीय संस्करण के साथ कन्नड़ का भी प्रथम संस्करण प्रकाशित किया जा रहा है। यह प्रस्तुत कृति की लोकप्रियता का ही प्रमाण है।
कृति के लेखक डॉ० योगेश चन्द्र जैन का नाम जैन विद्वानों में सम्मान के साथ लिया जाता है। आपकी कृति 'जैन श्रमण' को शास्त्र सभाओं में भी सम्मान के साथ पढ़ा जाता है। बालोपयोगी साहित्य में भी आपकी अभिरूचि धार्मिक कॉमिक्स. की ओर आकर्षित हुई। आपकी द्वितीय कॉमिक्स "नाटक हो तो ऐसे भी' प्रकाशित हो चुकी है। जैसे लेखक का विचार है कि २१वीं सदी में प्रवेश के साथ कम से कम २१ कॉमिक्स अवश्य प्रकाशित होनी चाहिये। इस दिशा में वे तत्पर भी है। अन्य कॉमिक्सों का काम भी गतिशील है जिनमें भद्रवाहु, चन्द्रगुप्त आदि के नाम उल्लेखनीय है।
हमारे ट्रस्ट ने भी यह उद्देश्य बनाया है कि मराठी/हिन्दी भाषा में अप्रायः अनुपलब्ध महत्वपूर्ण जनसाहित्य के प्रकाशन के साथ-साथ बालोपयोगी साहित्य भी प्रकाशित किया जाय। अभी तक जो रचनायें प्रकाशित हुई हैं उनमें योगसार (मराठी) रथयात्रा गीत, सम्मेद शिखर पूजन विधान (मराठी) का प्रकाशन किया जा चुका है। तथा पदमनन्दि पंचविशंति का ६०० पृष्ठ को पं० गजान्धर लाल जी कृत के साथ प्रकाशन का कार्य प्रगति पर है। आशा है कि ४ माह में वह भी पाठको को प्राप्त हो जायेगी इसका लागत मूल्य करीब ८०.०० रुपये आएगा। जबकि उसका विक्रय मूल्य ४०.०० रखना अपेक्षित है। पाठकों से निवेदन है कि वे इसकी कीमत कम करने में भी अपनी सहयोग राशि "श्री कुण्दकुण्द दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंडल ट्रस्ट, नागपुर' के नाम से ड्राफ्ट अथवा मनीआर्डर भेजकर कर सकते है। आपके सहयोग की हमें आशा है। अध्यक्ष निर्मलकुमार जैन
मंत्री अशोक कुमार जैन श्री कुण्दकुण्द दिगम्बर जैन स्वाध्याय मंडल ट्रस्ट, नागपुर
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कौण्डेश से कुन्दकुन्द शब्द - डॉ. योगेश चन्द्र जैन चित्र - त्रिभुवन शंकर बालोठिया
पुष्पदन्त
अकलंक
भारतवर्ष का दक्षिण प्रान्त संस्कृति एवं सभ्यता के लिए विश्व विख्यात है ।
समन्तभद्र
जैन साधुओं की जन्मस्थली होना यहाँ की मिट्टी को प्रकृति का स्वाभाविक वरदान ही है।
कुन्दकुन्द
उमास्वामी
An
भूतवलि
धरसेन
रविषेण
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मुक्ति कॉमिक्स
प्राचीन काल में यहाँ कौण्डेश नामक एक भोला-भाला ग्वाला रहता था। अपने स्वामी की गायों को चराने के लिए वह जंगल में ले जाया करता था।)
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गायों को जंगल में छोड़ कर एकान्त में झरने के पास प्रकृति का आनंद लिया करता था।
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मैंने जीवन में तो अभी तक इन लोगों को यहाँ नहीं देखा। ये क्यों आये हैं ? चलकर देखना चाहिए।
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एक दिन सभ्य नागरिकों को जंगल में आते देखकर कौण्डेश को बहुत आश्चर्य हुआ।
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उत्सुकतावश कौण्डेश उन व्यक्तियों के पीछेपीछे चलने लगा
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'अरे! वहां कौन वृक्ष के. (नीचे नग्न बैठा है?
कौण्डेश से कुन्दकुन्द
सभी जीव भगवान हैं। स्वयं को पहचान 'कर लीन हो जायें तो (सभी सुखी होंगें, कोई दुखी न रहेगा।
कोमल शरीर वाले ये धनवान लोग. नंगे पांव गर्मी सहते चले जा रहे हैं, कोई विशेष बात अवश्य है
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मुनिराज की जय हो ।
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मुनिराज की जय हो ।
कौण्डेश उपदेश समझने की कोशिश करने लगा
लेकिन मैं दुखी ग्वाला, भगवान हो सकता हूँ?
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मुक्ति कॉमिक्स नह शाम तक सोचता रहा कि सभी तो मुझे और फिर गायों को हांक कर ले गया। रास्ते | मूरख करते है। इन मुनिराज ने भगवान् कलाम में तेज बारिश आरंभ होने से वह भीग गया।
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कोण्डेश बिना भोजन किए बिस्तर पर लेटे उपदेश के विषय में सोचता रहा... ।
| कौण्डेश सुबह नहीं उठा तक मां ने उसे जगाया।
यदि भगवान बन गया तो गायें कौन चराएगा?
अरे!इसे तेज
बुखार है।
अरे! गाये भीतोमगवान बन सकती है।
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मांने वैघ को बुलाकर औषधिदी
एक हफ्ते में सुखार उतर गया, परन्न वह गायोंको जंगल न ले जा सका।
(माँगायें---
रहनेदे,अभी और दिन
मकर
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काण्डश स कुन्द कुन्द | पंद्रट दिन बाद कौण्डेश जंगल गया। अचानक जंगल जल चुका था, उसे चिन्ता हुई कि गायें ।
की चराऊंगा और वह चारों ओर देखने । लगा तभी
अरे वहाँ वह पेड़ हरा-भरा कैसे ? चल कर देखताहूँ।
भयंकर आग के बीच वह पेड़ कैसे सुरक्षित रह गया यह जानने के लिए वह चल पड़ा।
तभी उसे मुनिराज के उपदेश का स्मरण हुआ।
विश्व केजड़ चेतन के परिवर्तन स्वतन्त्र कोई किसी का कर्ताधुतो नहीं,सभी स्वतन्त्र है
इसजंगल को जलाया किसने) और उस वृक्ष को बचाया किसने?)
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अरे वाह! इसमेतकूछ लिखाी है। पर मैं तो पहना ही नहीं जानता।
वहां जाने पर उसकी निगाह पेडके खोरवले परं गई,और
अरे यह क्या है ? जरा) (खोल कर देखें तो सही.)
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मुक्ति कामिक्स
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यदि मैं पढ़ा लिखा होता तो पढलेता परन्तु अब में इसका क्या कर
शायद इस लिखे ताड़पत्र के कारण यह वृक्षजलाना
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“आत्माकभी मरता नहीं जलता नहीं, गलतानहीं तथा सूरखता भी नहीं।"
और कौण्डेशजंगल में खोजता हुआ बहुत दूर निकल आया।
००००
(6ीक है,यह ताडपत्र
में उन मुनिराज को (हीदूंगा।
चलते-चलते उसे दूर एक वृक्ष के नीचे मुनिराज दिखाई पड़े। कौण्डेश अछा के साथ आनंदित होता हआ मुनिराज की ओर चला जा रहा था। उसे सन्तोष हो गया ।
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कौण्डेश से कुन्द कुन्द
“हे मुनिवर ! यह ताड़पत्र स्वीकार कर मुझ पर उपकार कीजिए।" यह कह कर कौण्डेशने ताड़पत्र मिलने की सारी घटना कह सुनायी।
हाँ भव्य ! यह आत्मा नहीं परन्तु, इस में हमारी तुम्हारी आत्मा की बात लिखी
हाँ! हाँ! तुम्हें आत्मज्ञान अवश्य ही होगा और तुम सुखी भी होंगे। तुम्हें हजारों वर्षों तक लोग याद करेंगे
वह कैसे ?)
मुनिवर ने प्रसन्नता से कौण्डेश को देखा तो उसने भोलेपन से पूछा कि
मुनिवर ! क्या यह आत्मा है? क्यों कि यह भी जलाव गला नहीं है।
तो मुझे वह आत्मज्ञान कब व कैसे प्राप्त होगा ? (मेरा दुःख कब दूर होगा ?)
तुम्हें पता है ? आज तुमने संसार के दो महान कार्य किये हैं।
वो, क्या ?
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मुक्ति कॉमिक्स त
पहला- तुमने ताड़पन के रूप में शास्रा को सुरक्षित कर के.हजारों वर्षों तक के लिए अपना यश सुरक्षित
किया है।
और तुमने योग्य व्यक्ति को देकर जिनवाणी का प्रचार-प्रसार किया है।)
और दूसरा ?
(इससे क्या होगा
'तुमने शास्त्रदान देकर
सर्वज्ञ की वाणी को आगे वाया है। इससे भविष्य में सहारे नाम की गौरवपूर्ण परपराकोजी तुम युगपुरुष' बनोगे।
तभी से कौण्डेश का जीवन बदल गय) वह गायों पर और दयालु हो गया।
जब सभी भगवान है,तो किस भूलसे यह गाय और में ग्वाला बना?
अच्छा ! मैंने यह नहीं सोचा
एक दिन नदी में फीचड में फंसी गाय को देखकर कैडेश गाय को बचाने भागा परन्न
से टकराकर---
आह| अब तो प्राणान्त तय है, अत: आहारजलका त्याग कर समाधि लेता हूं MUCHARIWAMICALORAGRA
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कोण्डेश से कुन्द कुन्द
मृत्यु को प्राप्त हो कौण्डेश ने कौण्ड कुंदेपुर नगरसेठ के प्पर जन्म लिया।
(
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-
बधाई हो।
पुत्ररत्न हुआ है।
पुत्ररत्न की प्राप्ति पर नगर सेठ बहुत प्रसन्न हा। सेठने नगर में धार्मिक उत्सव किए।
ज्योतिषशास्त्र केर (भनुसार पदमनंदी नाम ओष्ठ है।
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(जाओ! नगरोत्सव
की तैयारी करो
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नगर में सानंद उत्सव) मनाया गया।
सुना है नगरसेटका पुत्रबहुत सुन्दर है।।
हक्या तुमने) (देना नहीं?
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10.
मुक्ति कॉमिक्स एक दिन पदमनंदी बहुत रो रहा था परिवार के सभी लोगों ने हर प्रकार से उसे चूप करने का प्रयान किया, किन्तव्यर्थरहा. तभी मंदिर से लौटी सेठान ने गोद में लिया...
शुद्धोऽसि बुद्धोऽसि
निरंजनोऽसि संसारमाया परिवजितोऽसि
lunna
आश्चर्य ! मां के द्वारा लोरी) सुनाने से यह चुप क्यों हो
जाता है?
मैंने भी तो'सोजा बेटा साजा' कहकरचूपकरने की कोशिश
की श्री भी यह रोता रहा।)
हां बहन मैंने (भी सुनाने की कोशिश की थी।
6000
मेरा बेटा चुप क्यों होता ? वह तो जागृति के गीत ही सूनना चाहता है।
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अवश्य ही इस प्रच्चे में कोई असाधारणबात
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कोण्डश से कुन्द कुन्द
हां! हां। क्यों नहीं ? बेटा भी तो तुम्हारा है,सोधर्मात्मा व विवेकशील ही होगा सेठानी।
तुम्हारा कथन सत्य हो बटन।
(हाँ। ऐसे पुत्र को । (जन्म देकर सेठानी ।
ने अपना जीवन (सफल बना लिया है।)
पदमनंदि कम सोता है, देर तकजागता हुआ मां से लोरियां सुनता है। सोचता है, हंसता है, तरह-तरह के प्रश्न करता है। इस बात से सेठानी चिंतित होती है । दिनोंदिन उनकी चिन्ता बदती जाती है। और एक दिन रात्रि को सोते समय अपने पति.. नगरसेठ को कहती है
देखोजीमुझे पदम बीमार लग रहा है।
(ठीक है अभी तुम आराम
करो। सुबह
देखेंगे।
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सेठ ने प्रात: निपुण चिकित्सकों एवं वैद्यों वज्योतिषियों को आमंत्रित कर समस्या से अवगत किया। तथा उन्हें । परीक्षा हेतु कटान
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परीक्षण के बाद उन्होंने अपने-अपने सुझाव दिए
आश्चर्य ! मात्र दो वर्ष की) आयु में अल्पनिद्रा, फिर ) भी पूर्ण स्वस्था
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मुक्ति कॉमिक्स
(इसकी प्रखर बुद्धिएवं) ग्राही मस्तिष्क होने से अल्पनिद्रा स्वाभाविक है।
मानसिक थकान से निद्रा आती है। तीक्ष्ण एवं जागृत बुद्धि होने से यह बालक निदा नहीं लेता किन्तु इसमें चिन्तित होने का कारण नहीं है।
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यह बालक तेजवान महापुरुष होगा सेठ।
आपलोगोफा करना सत्य है किन्तू...
किन्नु परन्तु कुछनहीं।) इतनी आयु में ऐसे शुभ लक्षणयुक्त शिशु को नहीं (देखा। तुम धन्य होसेठ!)
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नारसेहाआपने टम लोगों) को बुलाकर महा-उपकार किया है। ऐसे डाक के दर्शन कर हम कृतकृत्य हुए।
हां ! हो । क्यों नहीं ? जो भविष्य में इसकेसम्पर्क में रहेंगेवेधन्यव परम सौभाग्यशाली टोंगे।
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काण्डशस कुन्दकुन्द आशीवाद एवं शुभवचन कहकर
पंडितजी। दक्षिणाले जाइयेगा सभी जैछ आदिजाने लगे त... हमारी दक्षिणा मिल चुकीनगरसे6।। बालकका दर्शन कर मकाथ एए ।
बेटा पदम! कुछ समय आकर पद
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कमल पुष्प की तरह प्रसन्नता) बिखेरते पदमनंदिचारवर्ष काही चला। मां (सेठानी)ने प्रारंभिक अक्षर ज्ञान के साथ धार्मिक शिक्षा देना भी भारंभ ) कर दिया और एक दिन...
नहीं मां ! मैं तुमसे (नहीं पढूंगा । भव तुम नई बात नहीं सिखती हा मुझे।
अब इस पदम को क्या पठाऊँ! जो कुछ मुके ज्ञान था वट तो इसने कुछ महीनों में ही सीख लिया)। अब इसकी जिज्ञासा कैसे शीत कर ??
हा एक रास्ता अवश्य है, रात को मै पढूंगी और सुबह वही पदमको पहाऊँगी। यही टीका रहेगा।
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मुक्ति कामिक्स
आज सोयेंगी नहींपन्या प्रिये। दिन-रात पुस्तकार में ही खोई रहती है।
कुछ देर और पद । सुबह पदमको
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माँ बनना सरल है। मां का कर्तव्य निभाना, बङ्कत कहिन है।
| शीप्य ही पदम के लिए योग्य, विहान शिक्षक की व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे वह भी विहान बनकर सूर्य के समान प्रकार -वान बने।
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एक दिन प्रात:काल से ही कौण्डकुन्देपुर में बहुत टलचल था लोग प्रसनथेवे आपस में कुछ बात करते,और जंगल की ओर बढ़ जाता
अरे भाई सुबह-सुबह कटा भागे चले जा रहे है क्या) कोई संकट आ गया?)
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कौण्डेश से कुन्दकुन्द
क्यातुम अबतक सो रहे हो, अरे।
अवता जागने का समय है भैया। तिम साफ साफ बात क्योंरातो सुनो.संकट तो अब जाने नहीं कहते १च्या बात है। वाला है,क्यों कि आचार्यश्रेष्ठ
CM जिनचंद्र को नगर के समीप)
जंगल में देखा गया है।
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सुनो धुवेश! आज या हो रहा है नुम शासब को ? सुबह ही
अरे नहीं मालम? कल शाम वयोवृद्धांचार्य
श्री जिनचन्द्र जी का नगर के (पासजगल में देखा गया है।
कहां..
(मां ! जान्दी उठो, देखो उठ रही हूँ बेटे पद्म!) (आज सूर्य का उदय | परंतु तुम्हें क्या हुआ? हमा है।
सूयेदिय तो रोज ही होता है,नया क्या है?
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मुक्ति कामिक्स हाँ माँ! मैं ही क्या, आज तो ग्रानगर ही पागल होगा क्यों (कि आज के सूर्य का उदय ही ऐसा है जिससे अज्ञान का (नाश होगा। पाप गलेगे , ज्ञान के प्रकाश से सभीगल (पहेलियाँ क्यों झुकाते हो पदमर (तुमतो मुझही से पांडित्य)
करने लगे सीधी बात बताओ।)
होंगे
बात यह है माँ कि आचार्यवर जिनचन्द्र के) रूप में सूर्योदय हुआ है,वे पास के जंगल में) विराजमान है। सारा नगर उनके दरनि करने) जारहा है माँ। और में भी ।।
(सुनो पदम! मैं भी चल रही हूँ।
पदम माँ की प्रतीक्षा किए बिना ही चला गया।
इस बात से मां सोचती है कि मुनिराज के ०००० प्रति इतनी श्रद्धा और निष्ठा कि पद्म
मेर। पुत्र डेकर तनिक परीक्षा न कर सका। (सेठानी की सोच का बादल घना होने लगा
और उनके मस्तिष्क रूपी आकाश घर रहा गया । उनको अचानक पदम के मुनियनने (फा खयाल भाया कि --- ने स्वयं बुदबुदाने
लगी- नहीं नहीं! मैं ऐसा कभी नहीं होने (दंगी। मेरा ने। एक ही पुत्र है। मैं उसे मुनि (नहीं बनने दूंगी। मेरा पुत्र तो भावी नगर(सेठ है, और ज्ञान है मेरा पद्म ।
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जंगल के पास सभी एकचित होते हैं। दूर वृक्ष के नीचे ही आचार्य श्री ध्यानमग्न हैं। सभी आचार्यश्री के ध्यान खुलने की प्रतीक्षा मे हैं।
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अरे भाई ! हम तो प्रवचन सुनने आए थे, परन्तु मुनि -राज तो ध्यान में लीन हैं, और मुझे देर हो रही है।
हाँ भैया! प्रवचन से हमें ज्ञान प्राप्तः होगा। सुख का मार्ग मिलेगा ।
हाँ! तुम सत्य कहते हो । साप्पुजनों या सज्जनों की संगति को धनव्यय, 'कर के भी प्राप्त करना, चाहिए 1
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कोण्डेश से कुन्द कुन्द
पर हम तो प्रवचन सुनकर ही जायेंगे। आज कुछ देर से दुकान खोलेंगे तो क्या अनर्थ होगा। प्रवचन सुनकर हम लाभ ही लाभ होगा।
भाई ! तुम कुछ भी कहो अब में और अधिक समय व्यर्थ करना नहीं चाहता ! ' आचार्य का भी कुछ कर्तव्य, है, कि इतने लोग अपना फॉर्य छोड़कर यहाँ भारत हैं।,
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मुक्ति कॉमिक्स (तुम्हे जाना है तो जामो । परन्तु
मनिह किसी के श्रीन नहीं सोरिस के आने पर उपदरा
) (इसको क्या है। गय मुनिश्वार
तिको समयब्यश्री करनार टही। वास्तव में हमारी कह रहा है। जिसका भाग्य पूण्य का उदय अन) नहीं का अच्छा नहीं उसे स्सेही अशुभ
विचार आते हैं।
सांसारिक कार्य तो चलते ही है, रुकते नही।) फिर में क्यों मुनिराज के दरनि-प्रवचनादि के सुनने से चित राई। कितना समय) हो, मैं प्रवचन सुनकर ही जाऊंगा।
थोडा धीमे-धीमें बोलिए आदरणीय कहीं बातचीत से महाराज का ध्यान भंग न हो। अभी वे सिबों से वार्ता कर रहे हैं।
हो! हां! वह बालक ठीक ही कह रहा है,ध्यान तभी मुनिराज का ध्यान भंग होता है।वेजन-समूह की अवस्था तो सिद्ध भगवंतों से वार्ता की ली को सम्मुख देखकर उपदेश देने लगते है। अवस्था है। (परमसत्य, हमें शांति से
कलशुद्धत्मा को जाने बिना दुःख ही दुःख है। सुरव के
||लिए अहिंसा, दूया, सत्याचरण करना चाहिए उनकायका अनुमादनायटिसंभव हो तो मनियमधारण करना चाहिए। कर पुण्य का भागीदार होनाचाहिए
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कौन्डेश से कून्द कुन्द
- 19 विचारमग्न पदम उठकर आचार्य के सम्मुख पहुंचा.. अरे! यह बात मैंने अब (तक नहीं सुनी ।अपूर्वधात है)
(आचार्यवर। आपके घन्य मुनिदशा!
(हे भव्य ! तुम्हारे उपदेश से मैं संसार
विचार ना उत्तम
का स्वरूप जान गया हूँ।) (मेरे जीवन में ऐसी दशा कान कब होगी?
हनाथ! मुझे दीक्षादान है,किन्नु परिजनों दीजिए ।
की अनुमति प्रथम है।
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000000004
माँ ! क्या तुम मुझे अच्छापुत्र मानती हो, मेरा हित चाहजी हो और अनंत काल तक मेरी ही मां(बने रहनाचाहती हो।
हाँ पद्म ! क्या बात है ?? आज नुम ऐसी गंभीर (बाने क्यों कर रहे है।
(माँ ! मैने मुनि होने का निश्चय किया है। अचानक पुझसे मुनि (मैं सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर रहना | बनने की बात सुन मा (चाहता हूं। तुमसे दीक्षाकी आज्ञा-चारता
आज्ञाचास्ता || सेडानी का हृदय वियोग हूँ | तुम मुझे की कल्पना से ही तड़प
आज्ञा देगीन नहीं नहीं।
गया। उसने तरह-तरह ऐसा नहीं
से प्रम को समझाने (बोलो पदम!
का प्रयत्न क्रिया, किन्तु (अभी तुम्हारी)
सबव्यर्थ । पदम ने पहने-खेलने
उढ निश्चय कर लिया की आयु 30
था। माँ का प्रयास विफल रहा तो उसके नेत्रों से अश्रुधारा फूट निकली..। सभी सेठानी को देखने लगे।
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कौण्डेश से कुन्दकुन्द
नहीं माँ । में अपने जन्म के लिए) लज्जित हूँ। अब अनन्त काल, तक जन्म न लूंगा, किसी को कष्ट न दूंगा। इतने वर्ष संयम विनाव्यर्थ किये, परन्तु अब न करूंगा।
तुम जानते हो पदम कि मैं तुम्हें कितना प्यार.) (करती ई । नुम ही मेरी
एकमात्र संतान हमें कैसे अपनी ममता
को दबोच लूं।
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नहीं. नहीं.. पद्म ऐसा) नहीं होने दूंगी। तुम्ही अनन्त काल तक मेरे। पुत्र कहलाओगे।
(मैं जानता हूँ माँ । इसी लिए नुमसे दीक्षा की आज्ञा चाहता । तुम अपनी ममता को अमर कर दो अन्यथा इसी जन्म तक तुम्हारा पुत्र कहलाऊँगा तुम अपनी ममता को मेरी राह में न लाओमां
तुम्ही ने मुझे शिक्षा दी सहसंयम-पूर्वक
मुझे आज्ञा दो।
धिक्कार है ! मेरा मोट; जो सन्मार्ग पर चलने वाले पुत्र के सुख में ही डाधा बन रहा है।
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पर ऐसा संभव कैसे १२ पदम का कथन असत्यर० तो नहीं। और फिर माँ) का कर्तव्य तो पुत्र को कूमार्गसे रोकना है। नियोग की आशा सेठी में सार्थिनी बना
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कौण्डेश से कुन्द कुन्द | तुम तो कैसी धर्म की बातें करती थी। अब कैसे सिसफकर रो रही हो?
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कौन कहना है कि मैं रोती) हूँ। अरे। निर्मोही पुत्रकी सिंह गर्जना से मोटी माँ का मोड नेत्र-पथ से यह कर पुत्र के पद प्रक्षालित कर रहा है।
(फिर ये आंसू क्यों गिर रहे हैं?
00००००
ये आंसू नहीं भैया जन्म-मृत्यु को जीतने वाले पुत्र पर दोनों नेत्र सेजल भर कर महा मस्तकाभिषेक कर
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(और सुनो पद्म ! तुम्हें मेरे ममत्य की सौगन्ध, तुम (अनन्त काल तक मेरे ही पुत्र रहोगे। जाओ में तुम्हें (भवनाशिनी जैनेश्वरी दीक्षा की सहर्ष अनुमति प्रदान
करती हूं।
5 ठीक है माँ ! मैं जानता
था नुम अवश्य अनुमति) दोगी । तत्वज्ञानी जो हो। (और मेरी गुळी !
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मुक्ति कॉमिक्स बारह वर्ष की आय में पदम ने आचार्य जिनचन्द्र से दीक्षा ग्रहण की। अनेक लोगों ने प्रणवत लिए पद्म के वैराग्य से प्रभावित टोकर दीक्षित ए। हजारों ,लाखों लोग प्रेरित व प्रभावित हुए।
साधु बनकर पद्मनंदीकठोरअरे देखो पदमनंदी का तपा) तपशा करने लगे। उनकी कई दिनों से आगर भी कीर्तिचारों ओर फैमनेगी। नहीं लिया।
म जैन धर्म मैं अणुव्रत लेताह में प्रतिमारलेलाई अंगीकार कराई संघ के साधु भी उनकी तपस्या से प्रभावित हुए..
देखो तो सही। दीक्षा में चाहे हमसेर कोटे,परन्तु ज्ञान,ध्यान एवं तपस्यामेर हम सबसे श्रोष्ठाचत्यहै इनकी साधना
आचार्य जिनचन्द्र वृद्ध हो चले थे। वे दूसरे संघ फिर भी उन्होंने संघ के मूनियो सेजानकारी ली। में जाकर समाधि लेना चाहते थे। और योग्य मेरे पश्चात् इस संघ के आचार्य का पद कॉन) मुनि को आचार्य भार सौंपकर मुक्ति पानाचाह मुनि संभाल पायेंगे) रहथा मनदी हीसे मनि है जिन्हें
पदमनंदी से श्रेष्ठ) संघ के सभी मुनि चाहने प्रशंसा
इस भूतल पर कौन र
हेासकना है। करते है | भावों में भी विशेष प्रभाव है।
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कोडश से कुन्द कुन्द मैं तुम्हें यह जिनशासन सौंपता हूँ। इसकी गरिमा रखना तथा संघस्थ शिष्यों)
सामोसमाज में रक्षा करना तूटारा कर्तव्य है। आचार्य भगवंत की आज्ञा शिरोधार्य
S
AL
और आचार्य जिनचंद्र ४४(चवालीस)वधीय पदम मुनि का चतुर्विध संघ की उपस्थिति में संघ का भार
आचार्य पद सौंप कर समाधि हेतु प्रस्थान कर गये। आचार्य बनने के बाद उनका यशचारों दिशाओं में फैलने लगा । कौण्डकुंदेपुर जन्म-स्थान
कम होने से पद्मनंदी 'कुंदकुंद' नाम में प्रसिद्ध हुए।
(एक दिन पल्लववंश के राजार (शिवस्कन्ध सपरिवार उनके)
दर्शनाथ आने हैं।
अच्छा हुआ,राजाके आग्रह। से कुंदकुंद एक दिन और ठहर, जायेंगे।
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कुंदकुंद से प्रभावित हेकर राजा शिव स्कन्ध भी मुनिवेषधारण कर संप्प के पीछे है। लिये।।
अरे । यह क्या ? मुनिसंघ को रोकने वाला ही स्वयं मुनि हमें भी राजाकेर
हा गया,तब संप का कोन राकेगा। श्रेष्ठ निर्णय का अनुकरण करना
चाहिए
AP
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गा।
मग
निर्जन गुफाओं.तरुकोटरों में रहते व महीनों निराहार रहने पर भी कुन्दकुन्दका-शरीर स्वर्ण सा रहने लगा। यह आश्चर्य देखकर संघ के मुनि सोचते है कठोर तपश्चर्या करने पर आचार्य श्री का शरीर-क्षीणन होकर तेजस्वी कैसे रहा?
तुम्हें पता नहीं ! आचार्य (को अनेक ऋहियों के साथ
चारण हि भी प्राप्त है (भव के पृथ्वी से चार ॐगुल). (ऊपर भी चल सकते है।
एक दिनस्वाध्याय करते हुए उन्हें किसी
| महाविदेटकाचक्रवती सीमन्धरभगवान से प्रश्न पूछता है आगम का मर्म जानने की तीय इच्छा हुई।
भगवन ! भरतक्षेत्र में आचार्यक्रन्दकुन्दवही,
इस समय सर्वश्रेष्ठ) आचाप्यकुन्दकुन्दनराकर इसका समाधान
साधु कौन है?
धर्मगौरव हैं। महाविदेह के तीर्थकरसीमंधर भगवानही कर सकते है।
तभी वहां उपस्थित दो-चारण ऋडिया सोचते हैं। (हमे ऐसे महानतपस्वी व चला (ज्ञानोपयोगी संत के दर्शन करनेचाहिए।)
(फिर ते अविलम्बचलना)
हीचाहिए।
भरत क्षेत्र में भक्तजन कुन्दकुन्द आचार्य दशनार्थडेथेतभी...)
ओह ये क्या ? आकाशमार्गसेवे) कॉन मानवाकृतियाँनीचे आ रहीही)
अश्ये तो मुनिराज है। हाँ! हाँ! शायद चारा लिमुनि) (युगल कुंदकुंदभाचार्य की गुफा) (के पास उतर रहे हैं। हमें ) (वहीं चलना चाहिए।
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कौण्डेश से कुन्द कुन्द
25 मुनि युगल नीचे उतरकर आचार्यकुन्दकुन्द की वन्दना कर विराजते
है और अपना परिचय देते है। पूज्यपाद गणथरदेव की क्या प्राज्ञा है?
(आज्ञा जिनकी दासी हो,जो) (धर्म के गौरव हो,महाविदेह में जिनकी कीति हो,चरित्र र की चर्चा हो, उनके लिए क्या) माज्ञा हो सकती है।
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क्या आपको साक्षात् तीर्थकर देव के दर्शन की इच्छा नहीं होती।
क्यों नहीं ? यह दुर्बलता) अभी शेष है ही।
| क्यों न आपभी हमारे साथ चलें)
(विचार तो उत्तम है। वही जाकर कुछ शंकाओं का
समाधान होगा।
(आपको चारण मृद्धि प्राप्त हैही
आप भी हमारे साथ अहंत देव के दिव्य वचनामृत का पान
करेंज
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मुक्ति कॉमिक्स कुन्दकुन्द के महाविदेट में पहुँचने पर ५०० धनुष ऊँचे मनुष्य आश्चर्य से पूछते हैं---
भगवनाये छोटे शरीरवाले) /ये भरतक्षेत्र के महातपस्वी मुनिराज कौन है? श्रुतज्ञानी मुनिनाथकुंदकुंद है।
CICIONAL
आठ दिन रहकर जिनवाणी के मर्म का सूक्ष्मज्ञान प्राप्तकर कुंद कुंद भरत क्षेत्र लॉटे
धन्यभाग हमारे |जो आज हमें साक्षात् तीर्थकर की दिव्यवाणी सुनकर लोटे आचार्य कुन्दकून्द का प्रवचन सुनने का अवसर मिला है।
(आचार्यश्री! धर्म क्या है?
आचार्य कून्द कून्द भक्तजन कीरचारित्रही वास्तविक धर्म है। समस्यासनकर पास में ही बैठ) (धर्म से हीसमताभाव कोर गये..
उत्पति होती है।
(परन्नु मुझमें इतनी (सामय कहाँ ?
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कुन्दकुन्द सर्व प्रयम पान्जूर पर्वत पर जाकर समयसार की रचना करते हैं
कौण्डेश से कुन्द कुन्द
| उत्तर भारत विहार के समय साधुओं के आचरण
को देखकर करते हैं कि (समयमा सार (है। समयसार
सद्गुणों की ही वन्दना कीर (है,जो आत्मा
जाती है। इसके बिनाव्ययित) नुभूति है।
न तो सच्चा मुनि हो सकता
है और न ही श्रावक
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| जो मुनिवेषी होकर भी गन्दी भावना रखता |
|| उनके तर्कसंगत आत्महितकारी वचनों को सुन है, स्त्री सम्पर्क करता है, वहातो मुनि है ही। कर लोग प्रभावित हुए। श्वावक चची करने लग.) नहीं, तिर्यंच है।
देखो तो सही ७०० मुनियों का संघ। एक तरफ अध्यात्मप्रतिष्ठा और दूसरी ओरचारित्र को
जीवित किया
| हां ! हो। क्यों नहीं,यदि कुंद कुंदाचार्य लोग तो सवस्त्र मोक्ष पाने को बेठे थे,या न होते तो साधुओं में आए भ्रष्टाचरण
फिर नंगे होकर पूजे जाने के लिए आतुर को कौन रोक सकता था?)
थे। मुनिधर्म का निर्वाह कान करे?)
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(A) वने तथा
मुक्ति कॉमिक्स
भगवान महावीर के उपदेशको सम्पूर्ण भारत में | प्रचारित करते हुए कुन्दकुंदने ८४ पाहु ग्रंथों
की रचना की । उनकी आयु६५ वर्ष हो चलीथी (अब तो हाथ उन्हें योग्य शिष्य की तलाशथी जिसे संप्य भी कांपने लगे।
के आचार्य पद पर स्थापित करनाथा
योग्य मुनि को आचार्य पद सौंपकर मुनिवर कून्दकुन्द के देह त्याग के बाद समयानुसार मुनिवर कुन्दकुन्द समाधि हेतू अन्न | उनके अध्यात्मको अमृतचंद,जयसेनाचार्यादि जल कात्याग कर पान्नूर पर्वत पर गये ने आगे बढाया । उनके ग्रंथों की टीकाएं की।
जयसेनाचार्य
|सैकडों वर्षों तक लोग उनको याद करते रहे
आचार्य देवसेन ने कहा- यदि सीमन्धर भगवान से प्राप्त दिव्य ज्ञानका उपपेश कंदकुंदाचार्य न देते तो मुनिजन सच्चे
मार्गको कैसे पाते १२
अमृतचंद्र कुन्दकुन्द तो कलिकाल में सर्वज्ञ के रूप में थे।
हरान है, न होहिंगे मुनिन्द कुन्दकुन्द से।
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मनि श्रुतसाग
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सम्पादकीय
प्रातः स्मरणीय आचार्य कुन्दकुन्द भारत देश के महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सन्त हैं। भारतीय समाज पर उनका अविस्मरणीय अनगिनत उपकार है। आज से 2000 वर्ष पूर्व उन्होंने ही भारतीय साहित्यिकों को साहित्य की सुरक्षा, संरक्षण और संवर्द्वन करना सिखाया है। आत्मविद्या के महान वैज्ञानिक कुन्दकुन्द ने जीवन की सत्यानुभूतियों की चिंतन शैली' पर चिंतन करके उसमें नयी शोध-खोज कर भारतीय जन-मानस को नयी दिशा प्रदान की है।
भगवान महावीर के शासन के अन्तिम श्रुत-केवली भद्रबाहु के शिष्य कुंदकुंद ने बाल्यावस्था में ही राग-द्वेष आदि विकारों को ललकारते हुए वीतरागी नग्न दिगम्बर दशा अंगीकार करके मोही जीवों को चमत्कृत कर दिया था। सचमुच में ही बाल्यावस्था का उनका यह चमत्कार नमस्कार के योग्य था। सम्पूर्ण विश्व के जीवों को अपनी मजबूत फौलादी पकड़ करने वाले मोह को लोहे के चने चबाने वाले ये दूध के दांतो वाली कुन्दकुन्द की बाल्यावस्था, स्वयं में चमत्कार है। उनके जीवन चरित्र को प्रस्तुत करने वाली इस कामिक्स की प्रस्तुति के रुप में मेरा नमस्कार है, और चमत्कारी कुन्दकुन्द की उम्र के पाठक बच्चों को जो इसको पढ़कर अपना जीवन सुधारेगें, ज्ञानवान बनेगें, उन्हें हमारा सत्कार है, सत्कार है।
" डॉ. योगेशचन्द्र जैन
हमारा आगामी प्रकाशन "तीर्थका श्रृषभदेव"
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________________ INTIONATIMA Il Balathia अहमिन्को खलु शुद्धो