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मुक्ति कामिक्स
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यदि मैं पढ़ा लिखा होता तो पढलेता परन्तु अब में इसका क्या कर
शायद इस लिखे ताड़पत्र के कारण यह वृक्षजलाना
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“आत्माकभी मरता नहीं जलता नहीं, गलतानहीं तथा सूरखता भी नहीं।"
और कौण्डेशजंगल में खोजता हुआ बहुत दूर निकल आया।
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(6ीक है,यह ताडपत्र
में उन मुनिराज को (हीदूंगा।
चलते-चलते उसे दूर एक वृक्ष के नीचे मुनिराज दिखाई पड़े। कौण्डेश अछा के साथ आनंदित होता हआ मुनिराज की ओर चला जा रहा था। उसे सन्तोष हो गया ।
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