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काण्डश स कुन्द कुन्द | पंद्रट दिन बाद कौण्डेश जंगल गया। अचानक जंगल जल चुका था, उसे चिन्ता हुई कि गायें ।
की चराऊंगा और वह चारों ओर देखने । लगा तभी
अरे वहाँ वह पेड़ हरा-भरा कैसे ? चल कर देखताहूँ।
भयंकर आग के बीच वह पेड़ कैसे सुरक्षित रह गया यह जानने के लिए वह चल पड़ा।
तभी उसे मुनिराज के उपदेश का स्मरण हुआ।
विश्व केजड़ चेतन के परिवर्तन स्वतन्त्र कोई किसी का कर्ताधुतो नहीं,सभी स्वतन्त्र है
इसजंगल को जलाया किसने) और उस वृक्ष को बचाया किसने?)
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अरे वाह! इसमेतकूछ लिखाी है। पर मैं तो पहना ही नहीं जानता।
वहां जाने पर उसकी निगाह पेडके खोरवले परं गई,और
अरे यह क्या है ? जरा) (खोल कर देखें तो सही.)
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