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गा।
मग
निर्जन गुफाओं.तरुकोटरों में रहते व महीनों निराहार रहने पर भी कुन्दकुन्दका-शरीर स्वर्ण सा रहने लगा। यह आश्चर्य देखकर संघ के मुनि सोचते है कठोर तपश्चर्या करने पर आचार्य श्री का शरीर-क्षीणन होकर तेजस्वी कैसे रहा?
तुम्हें पता नहीं ! आचार्य (को अनेक ऋहियों के साथ
चारण हि भी प्राप्त है (भव के पृथ्वी से चार ॐगुल). (ऊपर भी चल सकते है।
एक दिनस्वाध्याय करते हुए उन्हें किसी
| महाविदेटकाचक्रवती सीमन्धरभगवान से प्रश्न पूछता है आगम का मर्म जानने की तीय इच्छा हुई।
भगवन ! भरतक्षेत्र में आचार्यक्रन्दकुन्दवही,
इस समय सर्वश्रेष्ठ) आचाप्यकुन्दकुन्दनराकर इसका समाधान
साधु कौन है?
धर्मगौरव हैं। महाविदेह के तीर्थकरसीमंधर भगवानही कर सकते है।
तभी वहां उपस्थित दो-चारण ऋडिया सोचते हैं। (हमे ऐसे महानतपस्वी व चला (ज्ञानोपयोगी संत के दर्शन करनेचाहिए।)
(फिर ते अविलम्बचलना)
हीचाहिए।
भरत क्षेत्र में भक्तजन कुन्दकुन्द आचार्य दशनार्थडेथेतभी...)
ओह ये क्या ? आकाशमार्गसेवे) कॉन मानवाकृतियाँनीचे आ रहीही)
अश्ये तो मुनिराज है। हाँ! हाँ! शायद चारा लिमुनि) (युगल कुंदकुंदभाचार्य की गुफा) (के पास उतर रहे हैं। हमें ) (वहीं चलना चाहिए।