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कौण्डेश से कुन्द कुन्द | तुम तो कैसी धर्म की बातें करती थी। अब कैसे सिसफकर रो रही हो?
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कौन कहना है कि मैं रोती) हूँ। अरे। निर्मोही पुत्रकी सिंह गर्जना से मोटी माँ का मोड नेत्र-पथ से यह कर पुत्र के पद प्रक्षालित कर रहा है।
(फिर ये आंसू क्यों गिर रहे हैं?
00००००
ये आंसू नहीं भैया जन्म-मृत्यु को जीतने वाले पुत्र पर दोनों नेत्र सेजल भर कर महा मस्तकाभिषेक कर
रहा I
(और सुनो पद्म ! तुम्हें मेरे ममत्य की सौगन्ध, तुम (अनन्त काल तक मेरे ही पुत्र रहोगे। जाओ में तुम्हें (भवनाशिनी जैनेश्वरी दीक्षा की सहर्ष अनुमति प्रदान
करती हूं।
5 ठीक है माँ ! मैं जानता
था नुम अवश्य अनुमति) दोगी । तत्वज्ञानी जो हो। (और मेरी गुळी !